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कविता : ऊँचे कद के लोग

शुक्रवार, 15 मई 2020

हमारे,
समय से बहुत पहले
जब जानवर पूजे जा रहे थे
तभी से यह सीखा था कि
ऊँची कुर्सियों पर जो बैठते हैं
वो लोग बड़े होते हैं
उनके कद इतने ऊँचे होते हैं कि
सीधे तनकर खड़े हो जाएँ तो
शायद, परिस्तान इनके कंधों पर टिक जाए
ये लोग इसलिये ही झुके रहते हैं
इनके कान एक तरफ़ से सीधे सुनते हैं ईश्वर को
इसलिये नही सुन पाते जमीन से उठती कराहें
यह जब गर्दन झुकाकर सुन रहे होते हैं
ईश्वर को
तब गर्दन का दूसरा हिस्सा सुन रहा होता है
जमीन से उठ रही कराहों को
तब इनके कान
एक से लेकर दूसरे के रास्ते
पहुंचा देते हैं कराहों के ईश्वर के पास
और फ़िर खो जाते हैं
परिस्तान के संगीत में अपनी थकी आँखों को मूंदे
क्या बड़े लोग केवल भोंपू की तरह ही होते हैं?
---//---
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 14-05-2020

औरतें

रविवार, 8 मार्च 2020

मेरी औरतें
अब भी अपनी पहचान के लिए
कुछ नही करती
न छपी होंती हैं कहीं
न बहस कर रही होंती हैं किसी फोरम में
न ही थामें होंती हैं बुके 
और मुस्कराती एक दिन
वो
आज भी सुबह से निकली है
हाथों को हथियार बना
देह को झोंक लड़ेगी जंग
हार नही मानेगी भूख से
और शाम ढले 
लौट आएगी अपने चूजों के लिए
चुग्गा लेकर...

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@मुकेश कुमार तिवारी
08-मार्च-2020

कविता : खेल

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

शहर के बीच 
मैदान 
जहाँ खेलते थे बच्चे 
और उनके धर्म घरों में 
खूँटी पर टँगे रहते थे
जबसे एक पत्थर 
लाल हुआ तो
दूसरे ने ओढ़ी हरी चादर
तबसे बच्चे 
घरों में कैद हैं
धर्म सड़कों पर है 
और खूँटियाँ सरों पर
अब बड़े खेल रहे हैं

@मुकेश कुमार तिवारी
29-फेब्रुअरी-2019