हम
दोनों के बीच पूरे चैबीस घंटे थे
यदि मेरे बस में होता तो लिख देता
अपने हिस्से को भी
तुम्हारे नाम
और यह जद्दोजेहद
यहीं खत्म हो जाती
हमेशा के लिए कि
मेरे पास तुम्हारे लिए वक्त नही है
मेरे
अपने पास तो अपनी वज़हों के लिए
खामोशियाँ ही बचती है
जिन्हें तुम अक्सर
मेरी लाचारियों का नाम दे देती हो
और यही समझती हो
ऑफिस में
और कुछ नही होता
सिवाय लकीरों के पीटने के
यह वक्त का साँप
न जाने कब सरक आया है
तुम्हारे पास
और मैं लौटा हूँ
तुम्हारे हिस्से का वक्त
जाया करके
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 30-जुलाई-2012 / समय : 06:10 सुबह / घर