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कविता : पंख

मंगलवार, 3 सितंबर 2013


मैं
जब तक नही जानता था
अपने पंखों को
अन्जान था
आकाश की गहराइयों से
बस
धरती के छोर पर ही 
खत्म हो जाती थी
दुनिया मेरी

एक सुबह
आकाश ने रचे
रंगों के षड़यंत्र
मेरे लिए
तब कहीं जाके
मेरे पंखों ने लांघी
क्षमता की दहलीज
और समूचा
आकाश सिमट आया
मेरी उड़ान में
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : ०३-सितम्बर-२०१३ / १०:४० रात्रि / घर