आज,
फिर मना गणतंत्र दिवस
सुबह से ही रेडियो चीख रहे थे
मॉल्स में भारी छूट मिल रही थी
देशभक्तिं शीतलहर सी फैली हुई थी
स्कूलों से लड्डू खाये बच्चे लौट रहे थे
गण चौराहों पर बेच रहा था
एक रुपये में झंडा
जो कुछ देर तो जरूर हाथों में था
रस्मी तौर पर फिर.........
जिनके,
बाप के पास पैसे थे
उनके हाथ में झंड़े थे
तंत्र उनके साथ था
जिसके पास पैसा था
सुस्ता रहा था छुट्टी की दोपहर
और बचा हुआ,
गण,
पैसे पैदा कर रहा था
झंड़े बेचकर /
घरों से कचरा फेंककर /
या बदल कर भीड़ में
एक जून की जुगत में
जिंदाबाद / जयहिन्द बोल रहा था
-------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : २६-जनवरी-२००९ / समय : ११:३० दोपहर / पलासिया चौराहे पर
फिर मना गणतंत्र दिवस
सुबह से ही रेडियो चीख रहे थे
मॉल्स में भारी छूट मिल रही थी
देशभक्तिं शीतलहर सी फैली हुई थी
स्कूलों से लड्डू खाये बच्चे लौट रहे थे
गण चौराहों पर बेच रहा था
एक रुपये में झंडा
जो कुछ देर तो जरूर हाथों में था
रस्मी तौर पर फिर.........
जिनके,
बाप के पास पैसे थे
उनके हाथ में झंड़े थे
तंत्र उनके साथ था
जिसके पास पैसा था
सुस्ता रहा था छुट्टी की दोपहर
और बचा हुआ,
गण,
पैसे पैदा कर रहा था
झंड़े बेचकर /
घरों से कचरा फेंककर /
या बदल कर भीड़ में
एक जून की जुगत में
जिंदाबाद / जयहिन्द बोल रहा था
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : २६-जनवरी-२००९ / समय : ११:३० दोपहर / पलासिया चौराहे पर