हमारे,
समय से बहुत पहले
जब जानवर पूजे जा रहे थे
तभी से यह सीखा था कि
ऊँची कुर्सियों पर जो बैठते हैं
वो लोग बड़े होते हैं
उनके कद इतने ऊँचे होते हैं कि
सीधे तनकर खड़े हो जाएँ तो
शायद, परिस्तान इनके कंधों पर टिक जाए
ये लोग इसलिये ही झुके रहते हैं
इनके कान एक तरफ़ से सीधे सुनते हैं ईश्वर को
इसलिये नही सुन पाते जमीन से उठती कराहें
यह जब गर्दन झुकाकर सुन रहे होते हैं
ईश्वर को
तब गर्दन का दूसरा हिस्सा सुन रहा होता है
जमीन से उठ रही कराहों को
तब इनके कान
एक से लेकर दूसरे के रास्ते
पहुंचा देते हैं कराहों के ईश्वर के पास
और फ़िर खो जाते हैं
परिस्तान के संगीत में अपनी थकी आँखों को मूंदे
क्या बड़े लोग केवल भोंपू की तरह ही होते हैं?
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 14-05-2020
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