शायद,
अब बकरियाँ सीख लें
अपने दाँतों को पैना करना
और काट लें सड़कों पे भागते आदमी को
शायद,
अब मुर्गें भी सीख लें
अपने पंजों में जान डालना
और पकड़ बनाना मजबूत नाखूनों के सहारे
कुछ ऐसी की
नोंच सके आदमी का चेहरा
जंगल,
तो पहले भी महफूज नही था बिल्कुल
शायद इसिलिये ही
इन्होंने पसंद किया होगा
किसी खूंटे से बंधना /
तलाश लेना अपने लिये दड़बा कोई
लेकिन,
यह पालतू अब ड़रने लगे हैं
घरों में जंगली होते आदमी से
आखिर जान तो सभी को प्यारी होती है
फिर,
वो चाहे कोई चौपाया ले या दोपाया
-------------------------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : १०-जून-२०१० / समय : ०३:०० दोपहर
पर्यावरण दिवस विशेष : पेड़ तब भी नही सुखाता
शुक्रवार, 4 जून 2010
कल ०५ जून विश्व पर्यावरण दिवस है, खूब शोर होगा, अपीले होंगी, पौधे रोपे जायेंगे, तस्वीरे खिंचेगी लोग जबरिया मुस्कुराते हुये न जाने क्या भाषण पेलेंगे और हो जायेगा इस बार भी पर्यावरण दिवस..........
चिडियों,
ने जब बदल लिया हो
अपना आशियाना /
छांव ने तलाश लिया हो
कोई और ठौर /
न किसी डाल पे
कोई झूलते याद करता हो किसी को /
न तले गुड़गुड़ाते हों हुक्का बूढ़े
सुबह से शाम तक
पेड़,
तब भी नही सुखाता
पेड़,
जब सूखता है तो,
केवल पत्ते नही झरते,
न ही दरारें झाँकने लगती है डालों से
या उसके तने को ठोंककर पूछा जा सकता हो हाल
जब,
जड़ों में सूखने लगती है
आशा की नमी
कि, किसी शाम
कोई गायेगा गीत जी भरके /
कोई रोयेगा बुक्का भरके /
कोई सुखायेगा पसीना
पेड़ सूख जाता है
--------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : १६-अप्रैल-२०१० / समय : ०८:१० रात्रि / ऑफिस से लौटते
चिडियों,
ने जब बदल लिया हो
अपना आशियाना /
छांव ने तलाश लिया हो
कोई और ठौर /
न किसी डाल पे
कोई झूलते याद करता हो किसी को /
न तले गुड़गुड़ाते हों हुक्का बूढ़े
सुबह से शाम तक
पेड़,
तब भी नही सुखाता
पेड़,
जब सूखता है तो,
केवल पत्ते नही झरते,
न ही दरारें झाँकने लगती है डालों से
या उसके तने को ठोंककर पूछा जा सकता हो हाल
जब,
जड़ों में सूखने लगती है
आशा की नमी
कि, किसी शाम
कोई गायेगा गीत जी भरके /
कोई रोयेगा बुक्का भरके /
कोई सुखायेगा पसीना
पेड़ सूख जाता है
--------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : १६-अप्रैल-२०१० / समय : ०८:१० रात्रि / ऑफिस से लौटते
सदस्यता लें
संदेश (Atom)