मशरूहफियाँ,
आदमी को सिखाती हैं
खुद में ही सिमटे रहने
और सिमटते रहना
किसी ऊन के गट्टे की तरह
और गढ़ना दुनिया अपने इर्द-गिर्द
जो भी आस-पास है
उसे समेटे रहना
सिर्फ अपने लिये
किसी दिन,
यह मशरूहफियाँ
बदल के रख देती हैं
इस सिमटे हुए आदमी को
किसी मशरुम में
और वो कटने लगता है इन्सानों से
पाया जाने लगता है किसी कोने में
कुकरमुत्ते की तरह
एकाकी
तकरीबन शेष दुनिया से अलग-थलग
या अपनी ही प्रजाति में
बेतरतीब उगी हुई कॉलोनी सा
लगभग बेमतलब......
-----------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 28-05-2011 /समय : 01:45 दोपहर / लंच ब्रेक
आदमी को सिखाती हैं
खुद में ही सिमटे रहने
और सिमटते रहना
किसी ऊन के गट्टे की तरह
और गढ़ना दुनिया अपने इर्द-गिर्द
जो भी आस-पास है
उसे समेटे रहना
सिर्फ अपने लिये
किसी दिन,
यह मशरूहफियाँ
बदल के रख देती हैं
इस सिमटे हुए आदमी को
किसी मशरुम में
और वो कटने लगता है इन्सानों से
पाया जाने लगता है किसी कोने में
कुकरमुत्ते की तरह
एकाकी
तकरीबन शेष दुनिया से अलग-थलग
या अपनी ही प्रजाति में
बेतरतीब उगी हुई कॉलोनी सा
लगभग बेमतलब......
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 28-05-2011 /समय : 01:45 दोपहर / लंच ब्रेक