अंगूठे,
को लेकर
मेरा कौतुहल
आज भी विद्यमान है
महाभारत काल से लगाकर आजतक
जब आदमी रख चुका है
अपने कदम अंतरिक्ष के सीने पर
अंगूठे के अस्तित्व को नही नकार पाया है
फिर, वो चाहे
एकलव्य का रहा हो
आम आदमी का
किसी
आज भी
जब विज्ञान नही समझ पाता है
किसी बात को
रुक जाता है
किसी रूल ऑफ थम्ब पर
लेते हुए सहारा अंगूठे का
तर्कों को ठेंगा दिखाते हुए
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मुकेश कुमार तिवारी
गुरू पूर्णिमा के अवसर पर / दिनाँक : १५-जुलाई-२०११