मैंने माँ से पहचाना
एक स्त्री होना
कितना दुसाध्य है
कोई देवता हो जाने से
पहचाना
अपनी बहिनों से
कैसे वो जोड़े रखती हैं
एक घर को दूसरे से
सीख पाया
अपनी बेटियों से ही
कैसे परियाँ खिलखिलाती हैं
घर आँगन में
अनुभव कर रहा हूँ
कैसे एक नन्ही तितली
भर देती है खुशियों के रंग
और लगता है
जीवन शेष है अभी
इनके बाद
जो दुनिया है
या जो भी है मेरी दुनिया में
वो तुम हो
मैं तो केवल टुकड़ा टुकड़ा
विस्तार हूँ तुम सभी का...
@मुकेश कुमार तिवारी / 08-मार्च-2021
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