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कविता : पंख

मंगलवार, 3 सितंबर 2013


मैं
जब तक नही जानता था
अपने पंखों को
अन्जान था
आकाश की गहराइयों से
बस
धरती के छोर पर ही 
खत्म हो जाती थी
दुनिया मेरी

एक सुबह
आकाश ने रचे
रंगों के षड़यंत्र
मेरे लिए
तब कहीं जाके
मेरे पंखों ने लांघी
क्षमता की दहलीज
और समूचा
आकाश सिमट आया
मेरी उड़ान में
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : ०३-सितम्बर-२०१३ / १०:४० रात्रि / घर
 

 

कविता : उम्र के दोराह पर......

रविवार, 7 अप्रैल 2013

मेरे एक करीबी मित्र हैं वली खान और उनके साहबजादे अमन खान, बस एक दिन यूँ ही कह बैठे कि अंकल एक ऐसी कविता सुनाओ जिसमें मैं हूँ, बच्चे की अचानक की गई इस माँग से मैं पहले तो हतप्रभ था लेकिन फिर एक प्रयास से उनके ड़ाईंग रूम में ही तकरीबन आशु कविता सी जो उस बच्चे ने बहुत पसंद की और मुझे कहीं ऐसा लगा जैसे शायद मैं उसकी भावनाओं को समझ पाया, अपने प्रयास में :-

मैं
चाहता हूँ
फिर से खेलना
मिट्टी से बनाना घर
अपने सपनों का
और
रचना एक छोटी सी दुनिया......शांत
यहाँ
बहुत शोर है
और मोटी मोटी किताबें
होमवर्क / एक्जाम्स में फेल होने का खौफ़

फिर से
खो जाना चाहता हूँ
बागीचे में
तितलियों के पीछे
या जमा करते हुए चिडियों के पंख
या बहुत दूर तक भागते हुए
किसी पतंग का पीछे करते

यहाँ से
जो मैं देख रहा हूँ
तो मेरा बचपन गुम हो रहा है
और बड़ा होकर क्या करना है
सामने खड़ा है
किसी यक्ष प्रश्न सा
इतना भ्रमित होता हूँ
इस दोराहे पर

फिर से
लौट जाना चाहता हूँ
अपने बचपन में
उन्हीं सुहाने दिनों में
अपनी कॉमिक्स की दुनिया में
दादा की उंगली पकड़
फिर से घूमता रहूँ
अपनी लॉन में और सीखता रहूँ चलना
अपने कदमों पर
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 17-नवम्बर-2012 / समय : 01:00 दोपहर / अमन खान के लिए 

कविता : कल्पवृक्ष

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

एक लम्बे अंतराल के बाद कोई पोस्ट कर पा रहा हूँ,  इसबीच अपनी नौकरी की व्यस्तताएँ, कमिटमेंट्स फिर बेटे का बीमार हो जाना और फिर एम.ई.(प्रोडक्शन इंजि एवं डिजाइन) कि परिक्षाएँ न जाने उलझने हैं कि खत्म ही नही होती। अब बाहा-२०१३ (www.bajasaeindia.org) की तैयारियों में उलझा हुआ हूँ, बहरहाल हाल में लिखा हुआ आप सबसे बाँट लेना चाहता हूँ :-


नानी की कहानियों में
अक्सर सुना था
कल्पवृक्ष
और वो
मेरे
सपनों में सवार था तभी से
किसी दिन
मैं पा जाऊंगा उसे
अपनी सारी इच्छाएँ
पूरी कर लूंगा
ऐसे न जाने कितने सपने पाले
बड़ा हो गया
एक दिन
अब न तो कल्पवृक्ष है
न नानी
लेकिन अब भी
सपने हैं
इच्छाएँ हैं
और
विकल्प
की तलाश मौजूद है
शायद इनमें ही कहीं होगा
मेरा कल्पवृक्ष
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 22-जनवरी-2013 / समय : रात्रि 8:00 / राजश्री हास्पिटल