विचार,
जब उठते हैं
मन में ज्वार की तरह
तो अपनी अनुगूंज से पैदा करते हैं
शब्द!
और विलीन हो जाते हैं
मन की गहराईयों में कहीं
छटपटाते हुये
शब्द!
जब जन्म लेता है तो
कुलबुलाता है दिमाग की तह में
और मचलता है
पैर पसारने को
अकेला शब्द जब कुछ नही कर पाता है तो
अपने ही हिस्से से पैदा करता है
शब्द कई टूटते-जुड़ते हुये ढ़ल जाता है
संवाद में
और तौड़ देता है
सारे मौन को
-------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 24-मार्च-2011 / समय : 02:20 दोपहर / लंच ब्रेक में
जब उठते हैं
मन में ज्वार की तरह
तो अपनी अनुगूंज से पैदा करते हैं
शब्द!
और विलीन हो जाते हैं
मन की गहराईयों में कहीं
छटपटाते हुये
शब्द!
जब जन्म लेता है तो
कुलबुलाता है दिमाग की तह में
और मचलता है
पैर पसारने को
अकेला शब्द जब कुछ नही कर पाता है तो
अपने ही हिस्से से पैदा करता है
शब्द कई टूटते-जुड़ते हुये ढ़ल जाता है
संवाद में
और तौड़ देता है
सारे मौन को
-------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 24-मार्च-2011 / समय : 02:20 दोपहर / लंच ब्रेक में