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कविता : कुछ मोहब्बत भरी बातें

सोमवार, 26 सितंबर 2011

आज चार दिन के प्रवास पर निकला हूँ और यह पहला ही दिन है और वो भी अभी पूरा नही हुआ है, कल सुबह से ही ट्रेनिंग क्लास और फिर न जाने क्या-क्या। लेकिन एक बात तो है, मैं तुम्हें मिस कर रहा हूँ...........इस वक्त भी


तुम्हें,
बड़ा अजीब सा लगता है
घर में यूँ ही सिमटे रहना
या समय काटने को
लेकर बैठ जाना
सिलाई / कढाई / चुनाई या बुनाई
अचार के लिये कैरियाँ काटते
या पापड़ के लिये आलू का मांड़ पकाते
तुम्हें लगता है
कोई रच रहा है साजिश
औरतों के खिलाफ

मैं,
नही चाहता कि
तुम किसी दिन भूल जाओ
अपना नाम भी
और गुमसुम बैठी रहो
ताकते शून्य में
भावशून्य चेहरे पर उभर आयें
आंसुओं की लकीरें

किसी,
प्रश्‍न के जवाब में
तुम्हें तलाशने हो शब्द
फिर थक-हार चुप बैठ जाना हो
या बड़ी देर बाद कुछ कहना हो धीमे से
और,
किसी प्रतिप्रश्‍न के जवाब में
सुबकते हुये थमी नज़रों से देखना हो

इसलिये,
सिर को झटककर
एक बार देखो मेरी ओर  
मुस्कुराओ
और झाडू उठाकर बुहारो
मेरा कमरा
फिर कमर में खोंसकर साड़ी
और चौखट से टिके हुये
कुछ बातें करों मुहब्बत भरी
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : १७-मई-२००९ / समय : ११:२० रात्रि / घर