गर्मियों के आते ही कोयल का कूकना, आम की डालियों का फलों से लद जाना, प्यास बुझाते लाल तरबूज और न जाने क्या-क्या। लेकिन घमौरियों का गर्मी में उभर आना जैसे किसी बिन बुलाये मेहमान की तरह आ जाना गर्मियों के दिनों को रह-रहकर याद दिलाता है। मुझे ऐसा लगता है केवल घमौरियाँ ही मौसम की वज़ह से नही आती कोई और भी इस साजिश में शामिल है.......
विचारों से,
जैसे भागना मुश्किल था
पूरे दिमाग में महसूस कर रहा था
बादलों की तरह घुमड़ते
या अलाव पर फुदकते हुए पॉपकार्न सा
और
अपनी प्रोफ़ेशनल मज़बूरियों के चलते
न भीग पा रहा था
न कसमसा पा रहा था
वो,
सुबह जिसके सपने
देखे थे सारी रात
और आँखों में ही गुजार दिया था
वो सारा वक्त
जब दुनिया या तो
बढ़ने की कवायद में जुटी होती है
या व्यापार कर रही होती है
घोडों का
तब मैं बुन रहा था
एक निराली सुबह अपने लिये
उस,
सुबह का इंतजार
मुझे हर रात के बाद होता है
लेकिन,
सूरज मेरे लिये उगता ही है
बोझिल / थका-माँदा
जैसे रात ने
उसे उछालकर फेंक दिया हो
क्षितिज से आसमान की ऊँचाईयों पर
और वो मेरे कंधों पे
अपना सिर रखकर सो जाता है
मैं अपनी पीठ पर
पालने लगता हुँ घमौरियाँ
अपनी सुबह का इंतजार करते
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 07-मई-2011 / समय : 12:27 रात्रि / घर
विचारों से,
जैसे भागना मुश्किल था
पूरे दिमाग में महसूस कर रहा था
बादलों की तरह घुमड़ते
या अलाव पर फुदकते हुए पॉपकार्न सा
और
अपनी प्रोफ़ेशनल मज़बूरियों के चलते
न भीग पा रहा था
न कसमसा पा रहा था
वो,
सुबह जिसके सपने
देखे थे सारी रात
और आँखों में ही गुजार दिया था
वो सारा वक्त
जब दुनिया या तो
बढ़ने की कवायद में जुटी होती है
या व्यापार कर रही होती है
घोडों का
तब मैं बुन रहा था
एक निराली सुबह अपने लिये
उस,
सुबह का इंतजार
मुझे हर रात के बाद होता है
लेकिन,
सूरज मेरे लिये उगता ही है
बोझिल / थका-माँदा
जैसे रात ने
उसे उछालकर फेंक दिया हो
क्षितिज से आसमान की ऊँचाईयों पर
और वो मेरे कंधों पे
अपना सिर रखकर सो जाता है
मैं अपनी पीठ पर
पालने लगता हुँ घमौरियाँ
अपनी सुबह का इंतजार करते
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 07-मई-2011 / समय : 12:27 रात्रि / घर