मेरी औरतें
अब भी अपनी पहचान के लिए
कुछ नही करती
न छपी होंती हैं कहीं
न बहस कर रही होंती हैं किसी फोरम में
न ही थामें होंती हैं बुके
और मुस्कराती एक दिन
वो
आज भी सुबह से निकली है
हाथों को हथियार बना
देह को झोंक लड़ेगी जंग
हार नही मानेगी भूख से
और शाम ढले
लौट आएगी अपने चूजों के लिए
चुग्गा लेकर...
--------//---------
@मुकेश कुमार तिवारी
08-मार्च-2020