हाँ,
मैं भूल गया हूँ मुस्कुराना/
अपने से बातें करना/
कहकहे लगाना/
या तुम्हारे गेसुओं में फिराते उँगलियाँ
भूल जाना जीने की जिल्लत
जब से आम पर बौराई है बारुद
खलिहानों में उग आई हैं खंदकें
मैं,
दफ़्न हो गया हूँ
वहीं, जहाँ दिखा था
आखिरी बार मुस्कुराता
---//---
मुकेश कुमार तिवारी
02-March-2019
@kavitaayan
कविता : अमराई में बारूद
रविवार, 3 मार्च 2019
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2 टिप्पणियाँ
मार्मिक रचना
5 मार्च 2019 को 2:04 pm बजेPackers and Movers Indore
6 जून 2019 को 3:45 pm बजेPackers and Movers A B Road Indore
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