मैंने माँ से पहचाना
एक स्त्री होना
कितना दुसाध्य है
कोई देवता हो जाने से
पहचाना
अपनी बहिनों से
कैसे वो जोड़े रखती हैं
एक घर को दूसरे से
सीख पाया
अपनी बेटियों से ही
कैसे परियाँ खिलखिलाती हैं
घर आँगन में
अनुभव कर रहा हूँ
कैसे एक नन्ही तितली
भर देती है खुशियों के रंग
और लगता है
जीवन शेष है अभी
इनके बाद
जो दुनिया है
या जो भी है मेरी दुनिया में
वो तुम हो
मैं तो केवल टुकड़ा टुकड़ा
विस्तार हूँ तुम सभी का...
@मुकेश कुमार तिवारी / 08-मार्च-2021
महिला दिवस पर हार्दिक अभिनंदन समस्त महिला शक्ति का...
3 टिप्पणियाँ
वाह ! बहुत सुंदर कविता
9 मार्च 2021 को 11:00 am बजेबहुत सुन्दर।
9 मार्च 2021 को 6:05 pm बजेअन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
इसे कहते हैं अपनी जड़ों का मान
23 अप्रैल 2021 को 10:47 am बजेएक टिप्पणी भेजें