तुम,
जब अपनी मांग में
सवालों को सजा लेती हो तो
तुम्हारी आँखों में
तैरते सपने डूब जाते हैं
समन्दर में
तुम,
टाँक लेती हो जरूरतों को
जब अपनी साड़ी पर
और लपेट लेती हो तो
यूँ लगता है कि
जैसे आसमान लिपट आया हो
तुम्हारे बदन से
और तुम जरूरतों में घिरी
मुस्कुरा रही हो
चाँद की तरह
तुम,
जब उम्मीदों से
गूंथ लेती हो वेणी(गजरा)
और सजा लेती हो
अपने जूड़े में
तो यूँ लगता है कि
जैसे मुझे मिल गया हो
जीने का मक़सद
तुम्हारी उम्मीदों और जरूरतों के बीच
तुम्हारे सपनों का सैलाब
मुझे बहाए लिये जाता है
जिन्दगी की ओर
---------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 31-मार्च-2011 / समय : 09:45 रात्रि / घर लौटते हुए
जब अपनी मांग में
सवालों को सजा लेती हो तो
तुम्हारी आँखों में
तैरते सपने डूब जाते हैं
समन्दर में
तुम,
टाँक लेती हो जरूरतों को
जब अपनी साड़ी पर
और लपेट लेती हो तो
यूँ लगता है कि
जैसे आसमान लिपट आया हो
तुम्हारे बदन से
और तुम जरूरतों में घिरी
मुस्कुरा रही हो
चाँद की तरह
तुम,
जब उम्मीदों से
गूंथ लेती हो वेणी(गजरा)
और सजा लेती हो
अपने जूड़े में
तो यूँ लगता है कि
जैसे मुझे मिल गया हो
जीने का मक़सद
तुम्हारी उम्मीदों और जरूरतों के बीच
तुम्हारे सपनों का सैलाब
मुझे बहाए लिये जाता है
जिन्दगी की ओर
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 31-मार्च-2011 / समय : 09:45 रात्रि / घर लौटते हुए
12 टिप्पणियाँ
आपकी इस रचना ने तो मन मोह लिया………बेहद उम्दा भावाव्यक्ति……………दिल को छूती हुई।
1 अप्रैल 2011 को 5:47 pm बजेbadi sahjata se kavita bahti hui
1 अप्रैल 2011 को 8:08 pm बजेaapke ek ek shabd mein swapnil pyaar ka indradhanush nazar aata hai
1 अप्रैल 2011 को 8:10 pm बजेबहुत सुन्दर भाव लिए यह रचना , बधाई
1 अप्रैल 2011 को 10:11 pm बजेKisee ke jism pe aasmaan lipat janaa....wah kya khayal hai!
1 अप्रैल 2011 को 11:33 pm बजेएक सधी-कसी शिल्प में बहुत ही अच्छी कविता।
2 अप्रैल 2011 को 12:03 am बजेAchchha laga aapke bhavon ki duniya ki sair karna.
2 अप्रैल 2011 को 11:41 am बजे-----------
क्या ब्लॉगों की समीक्षा की जानी चाहिए?
क्यों हुआ था टाइटैनिक दुर्घटनाग्रस्त?
जीने में गति ले आती कविता।
4 अप्रैल 2011 को 1:54 pm बजेMukesh Ji
7 अप्रैल 2011 को 5:26 pm बजेAapki kavitaon par ab "Comments" dene ki kshamta naheen bachi hai, to choti choti smiles se baat bana lijiye. Aapka lekhan din bar din zabardast hota ja raha hai, jabki bol sadharan aur ati sadharan hote ja rahe hain.
Regards
आप सभी को धन्यवाद!!!
7 अप्रैल 2011 को 8:48 pm बजेआप सबकी प्रतिक्रियाएँ ही मुझे प्रेरणा देती हैं कि मैं अपने लेखन में सुधारकर अपनी भावनाओं को आप सब तक सकता हूँ ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
behad khubsurar rachana...
8 अप्रैल 2011 को 2:37 pm बजेसपनों के सैलाब की सततता की शुभकामना
9 अप्रैल 2011 को 5:03 pm बजेसुन्दर अल्फाज और भाव
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