जब,
अपने होने के लिये
नापनी होती हैं तुम्हारी बुलंदियाँ
यकीनन तकलीफ़ होती है
लेकिन,
मैं छोटा नही हो जाता हूँ
मैं,
तुम्हारी परछांईयों की डोर से
नापता हूँ आकाश
रचता हूँ इन्द्रधनुष अच्छाईयों से
तुम्हारे विस्तार के लिये और विद्यमान रहता हूँ
अपने पूरे स्वरूप में
तुम्हारे लाख न चाहने के बावजूद भी
जब,
मुझे एक रात पाने के लिये
अपने हिस्से का सूरज कुर्बान करना होता है
और रोशनी के वसियतनामे पर
लिखना होता है तुम्हारा नाम
लेकिन,
मैं अंधेरों में नही डूब जाता हूँ
मैं,
अपनी मुट्ठी में
जुगनूओं को कैद रखता हूँ
कि फूंक सकूं रोशनी
अंधेरे की कोख में जन्म लेते सूरजों में
जिन्हें किसी दिन तो कुर्बान होना ही है
तुम्हारी,
राहों को रोशन करते हुये
हर,
इक दिन जो
तुम मिटाते हो मेरे हिस्से से
छोड़ जाता है
मेरे पास रहन
कुछ आवारा पल छिटके हुये
जिनसे मुझे पैदा करना है कुछ दिन /
फिर नया साल
तुम्हारे लिये
अपने वक्त की पैबंद टाँकते हुये
तुम,
पूरा जी भी नही पाओगे
नया साल जैसा तुम चाहते हो
यह साल भी
गुम हो जायेगा कहीं
तुम्हारे आसपास के शोर में
और
बची रह आई सिसकियों से
मुझे फिर पैदा करना होगा
एक नया साल दुनिया के लिये
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 20-दिसम्बर-2010 / समय : 10:20 रात्रि / घर
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9 टिप्पणियाँ
बहुत बढ़िया रचना पंडित जी बधाई ... नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ...
29 दिसंबर 2010 को 11:30 am बजेबहुत ही सुन्दर रचना………………नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .
29 दिसंबर 2010 को 12:22 pm बजेसबकी उम्मीदों में शुरु नया वर्ष, जो भी मिला उस पर ही समाप्त हो गया। पुनः नया प्रारम्भ।
29 दिसंबर 2010 को 12:30 pm बजेसुन्दर अभिव्यक्ति.
30 दिसंबर 2010 को 8:19 am बजेbahut hi sundar rachna....
30 दिसंबर 2010 को 10:22 am बजेदर्पण से परिचय
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर
30 दिसंबर 2010 को 12:04 pm बजेसच के करीब रचना भी रचनाकार भी । नववर्ष की शुभकामनाएं।
30 दिसंबर 2010 को 3:45 pm बजेदिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
30 दिसंबर 2010 को 8:22 pm बजेसादर,
डोरोथी.
मुझे फिर पैदा करना होगा
10 जनवरी 2011 को 7:29 pm बजेएक नया साल दुनिया के लिये
और फिर, फिर से शुरू होगा आशाओं और संकल्पों का एक नया अध्याय...
शानदार रचना
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