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अम्माँ के जाने के बाद

बुधवार, 22 अक्टूबर 2008

अम्माँ,
जीवन से लड़ती हुई
हार कर चली गई हैं

ज़ब तक थी
तभी तक थी लोगों के लिये
काकी, बड़ी अम्माँ, बुआ, भाभी, दादी, नानी
और भी ना जाने क्या क्या
सभी से जैसे उसने जोड़ रक्‍खे थे
कुछ ना कुछ रिश्ते
ऐसा लगता था
अम्माँ खुद नही
रिश्तों को जी रही थी/
रिश्तों के लिये जी रही थी

आज,
जैसे थम गया हो यह सिलसिला
अम्माँ ने ओढ लिया है चिर मौन
जिन्दगी भर के बोये हुये रिश्ते
अपनी बारी पर
बचते फ़िर रहे है कसौटी से
किसी को छुट्‍टी नही मिल पा रही है
किसी को ज़ल्दी लौटना है
किसी सुबह आने में देर हो सकती है
किसी को शर्म आती है बाल मुंडाने में
अम्माँ को इस बेला पर
सिर्फ़ तय करना है सफ़र औपचारिकताँए पूरी करते
किसी के कंधे में दर्द है
और श्मसान दूर

अम्माँ,
सो रही है इस बात बेख़बर
कि किसी को काटनी है पूरी रात जागते हुये
और चाय कम से कम दो बार तो लगेगी ही
मच्छरों से बचने के उपाय खो़जेगा कोई
फ़िर,
बातें अम्माँ से शुरु होगीं
उनसे जुड़ी हुई यादों से होते हुये
और सिमट आयेगीं कि
अभी इन्क्रीमेंट नही लगा है
मंहगाई आसमान छू रही है
बच्चे नालायक है, कुछ सुनते ही नही
फ़िर चाय की तल़ब बैचेन कर देगी

अम्माँ,
तैयार दी गई है
इस महा-यात्रा के लिये
किसी के मन में रह रहकर आ रहा है
कौन नही आया है?
किस किस को ख़बर कर दी गई है?
अख़बार में अम्माँ की तस्वीर कमोबेश
सभी निहार रहे है
वो भी,
जिनकी निगाहे ही नही उठती थी कभी उसकी ओर
किसी की चिंता में हिसाब होगा
किसी की चिंता में इंतजा़म
किसी को चिंता में शोक सभा होगी
सभी जैसे उलझे हुये हों
किसी ना किसी फ़ेर में
केवल
जिन्दगी भर चिंता पालने वाली
अम्माँ, बेख़बर थी
इस बार
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : २०-ऑक्टोबर-२००८ / समय : रात्रि : ११:०५ / घर