.post-body { -webkit-touch-callout: none; -khtml-user-select: none; -moz-user-select: -moz-none; -ms-user-select: none; user-select: none; }

कविता : बेमानी रात के ख्वाब

बुधवार, 21 मार्च 2012

तुम्हारे पसीने की बू
मुझे अच्छी लगती है
किसी रूम फ्रेशनर से भी बेहतर
और चाहता हूँ कि
तुम यूँ ही
मेरे तेज होती साँसों में समा जाओ

स बात का
कोई मतलब नही होता
कि हमारे बीच लाख नासमझियाँ हों
लेकिन फिर भी मैं
गुम हो जाना चाहता हूँ
तुम्हारी बाहों के दायरे में
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
लेकिन
तुम्हारे होने के बावजूद भी जब महकता है
कमरा किसी रुम फ्रेशनर से
और तुम
दूसरी ओर मुँह करके सो जाती हो
रात बेमानी हो जाती है
सुबह तक ख्वाब
बैचेनियों का सुरमा लगाये रह जाते हैं
मेरा अपना
पसीना गंधाने लगता है
--------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 20-मार्च-2012 / समय : 10:28 रात्रि / घर