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कविता : बाज़ार का दखल

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

जबसे, दिखने और बिकने के संबंधों को 
गणित ने परिभाषित किया
और अर्थशास्त्र के 
सिद्धाँतों ने समझाया कि
बिकने के लिए दिखना सम्पूरक है
कपड़े छोटे होने लगे

पहले,
पतलून ऊँची हुई तो
ज़ुराबें झाँकने लगी पाँयचों से बाहर
फिर ज़ुराबों पे
लिखा जाने लगा ब्राण्ड
अब सिर्फ ज़ुराबें ही पहनी जाती है
और पतलून
खोने लगी है अपनी उपयोगिता

अंतर्वस्त्रों,
पर सजे लेबल
अब बाहर झाँकने लगे है
मैं डरने लगा हूँ
बाज़ार के बढ़ते हुए दखल से
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 05-फरवरी-2012 / समय : 10:40 रात्रि / घर