माँ,
किसी भी उम्र में केवल माँ भर नही होती
जबकि वो खुद को भी नही संभाल पाती हो तब भी
विश्वास होती है / आसरा होती है
माँ,
के होने का मतलब है
जिसकी छाती पे चिपका सकते हो
तुम डरावने ख्वाब /कमरे में फ़ैले अंधकार को
जिससे तुम अब भी ड़र जाते हो कभी
तुम सो सकते हो उसकी गोद में रो सकते हो
उसके कंधो पर सिर रख कर माँग सकते हो
कुछ भी चाहे उसके पास हो ना हो पर वो कोशिश जरूर करती है खोजने की
मुँह उठा के मना नही करती
माँ,
इस उम्र में भी अपने से ज्यादा तुम्हारी चिंता करती है
रात बार-बार उठ के देख लेती हैकि तुम सो भी पा रहे हो या नही
तुम्हारे सिरहाने पानी रखा भी है या नही
कितनी बार तुम्हे कोफ़्त भी हुई होगी कि ना खुद सोती हैं ना सोने देती हैं
और जब तुम किसी ख्वाब से कर रहे होते हो चुहल
तो मौका लगते ही सहला देती है तुम्हार सिर हौले से
फ़िर बुनने लगती है कोई कहानी तुम्हारे बच्चों के लिये
जिसमें अब भी राजकुमार तुम्हारे सिवाय कोई और नही होता है
माँ,
अपनी पूरी उम्र में कभी जी ही नही पाती है अपने लिये
या तो बुन रही होती है स्वेटर तुम्हारे लिये
या तो पाल रही होती है कोख़ में तुम्हें
या पिला रही होती है छाती
या जाग रही होती है रात भर तुम्हारे साथ
गोया परीक्षा देना हो उसे
या मांग रही होती है दुआयें
कभी तुम्हारे लिये कभी तुम्हारे बच्चों के लिये
कभी अपने लिये कुछ मांगा भी
तो अपनी आधी उम्र तुम्हें देने कि सिवाय कुछ और नही
माँ,
केवल माँ भर नही होती
अपनी जिन्दगी भर
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०८-ऑक्टोबर-२००८ / समय : ११:२० रात्रि / घर
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7 टिप्पणियाँ
सर्वश्रेष्ठ और क्या कहूं "माँ" के बारे में.
11 अक्टूबर 2008 को 7:42 pm बजेमाँ........और जाने कहाँ से प्यार और पूजा की सुगंध
11 अक्टूबर 2008 को 8:59 pm बजेमन में चारों तरफ आशीर्वचन बन फैल जाती है.......
बहुत ही सच्चा लिखा है
ati uttam.
11 अक्टूबर 2008 को 11:54 pm बजेबेहतरीन रचना। प्रणाम के अलावा और क्या कहूं मां को।
12 अक्टूबर 2008 को 12:03 am बजेसुंदर कविता माँ को समर्पित लाजवाव लेकिन यह जान कर आश्चर्य हुआ की आप कविता घर पर लिखते हैं जबकि ज्यादातर तो सड़क पर लिखते हैं शायद ?? आपके खूबसूरत ब्लॉग पर सैर कर आनंद हुआ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है निरंतरता बनाए रखे
12 अक्टूबर 2008 को 10:22 am बजेमेरे ब्लॉग पर पधार कर व्यंग कविताओं का आनंद लें
मेरी नई रचना दिल की बीमारी पढने आप सादर आमंत्रित हैं
माँ को समर्पित सुंदर कविता
12 अक्टूबर 2008 को 12:11 pm बजेek sunder abhivyakti!
12 अक्टूबर 2008 को 5:53 pm बजेएक टिप्पणी भेजें