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कविता : उम्मीद

बुधवार, 19 सितंबर 2012

हमारे
बीच उम्मीदों का आस्माँ है
और हमें जोड़ता हुआ
इन्द्रधनुष
जिससे तुम चुनती हो
कोई चटक रंग अपनी पसंद का
और मेरे लिए धूसर
जिन्दगी में अब भी
शेष हैं रंग कई

हमारे
बीच नउम्मिदियों की जमीं है
और अंनत तक फैला हुआ
फासला
मैं बो देना चाहता हूँ
तुम्हारी प्रतीक्षा के बीज 
इस छोर पे
और तुम्हें देने के लिए
एक उम्मीद
जो अब भी अशेष रह आई है जिन्दगी में
-------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 11-मार्च-2012 / समय : 04:40 दोपहर / घर

12 टिप्पणियाँ

रंजू भाटिया ने कहा…

एक उम्मीद
जो अब भी अशेष रह आई है जिन्दगी में ..........उम्मीद भी की कोई उम्र क्यों नहीं होती ..?बहुत सुन्दर लिखा है आपने मुकेश जी .......

19 सितंबर 2012 को 5:47 pm बजे
रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुती |
सही बात है-
आभार ||

19 सितंबर 2012 को 7:48 pm बजे
सदा ने कहा…

वाह ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

20 सितंबर 2012 को 12:54 pm बजे

प्रभावी रचना है ...
कमाल लिखा है ..

20 सितंबर 2012 को 1:32 pm बजे

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !

20 सितंबर 2012 को 4:44 pm बजे

जो भी हो बीच में, स्पष्ट हो। अस्पष्टता में दूरियाँ बहुत अधिक लगती हैं।

20 सितंबर 2012 को 7:10 pm बजे
Asha Joglekar ने कहा…

वाह यह उम्मीद ही है जो हमें झीने की प्रेरणा देती है । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

20 सितंबर 2012 को 9:38 pm बजे
ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत खूबसूरत......


अनु

9 अक्टूबर 2012 को 1:11 pm बजे

उम्मीद ही तो जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है...
अच्छी रचना!!

9 अक्टूबर 2012 को 8:20 pm बजे
Satish Saxena ने कहा…

यह आवश्यक है भाई जी ...

11 अक्टूबर 2012 को 8:38 am बजे