मैं,
केवल विस्तार भर हूँ
उस अशेष-शेष का
और कुछ भी नही
इससे ज्यादा
यहाँ तक कि
मेरा होना भी
तुम्हारे होने की वज़ह का
मोहताज है
और अलहदा भी करता है
ठीक वहीं से
जहाँ तुम पाते हो
अपने विचारों को गड्ड-मड्ड होते
और छोड़ देते हो
प्रश्नों को उलझे हुए धागों सा
या सिर्फ अपने बाप होने के
अहसानों से दबा देते हो
या मुझे सीने होते हैं
होंठ अपने
और गुम हो जाना होता है
अपनी पहचान से परे
तुम्हारी परछाइयों में कहीं
--------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 11-जुलाई-2012 / समय : 11:00 रात्रि / घर
उस अशेष-शेष का
और कुछ भी नही
इससे ज्यादा
यहाँ तक कि
मेरा होना भी
तुम्हारे होने की वज़ह का
मोहताज है
शायद,
यही हमें जोड़ता भी है और अलहदा भी करता है
ठीक वहीं से
जहाँ तुम पाते हो
अपने विचारों को गड्ड-मड्ड होते
और छोड़ देते हो
प्रश्नों को उलझे हुए धागों सा
या सिर्फ अपने बाप होने के
अहसानों से दबा देते हो
या मुझे सीने होते हैं
होंठ अपने
और गुम हो जाना होता है
अपनी पहचान से परे
तुम्हारी परछाइयों में कहीं
--------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 11-जुलाई-2012 / समय : 11:00 रात्रि / घर
10 टिप्पणियाँ
मुकेश जी बहुत सुन्दर कविता है... एक नए सोच को जन्म देता है...
12 अगस्त 2012 को 12:17 am बजेवाह जी अच्छी कविता है
12 अगस्त 2012 को 1:02 pm बजेबहुत बढिया रचना है बधाई स्वीकारें।
12 अगस्त 2012 को 1:47 pm बजेहृदयस्पर्शी
12 अगस्त 2012 को 2:40 pm बजे--- शायद आपको पसंद आये ---
1. DISQUS 2012 और Blogger की जुगलबंदी
2. न मंज़िल हूँ न मंज़िल आशना हूँ
3. ज़िन्दगी धूल की तरह
सर आपके ब्लॉग पर CTRL+A करके सब कुछ Select हो जाता है और फिर उसे CTRL+C कर के कापी कर सकते हैं।
12 अगस्त 2012 को 2:46 pm बजेअपनाइए नया उपाय :
1. No Right Click on Post Text with CSS
2.No Right Click on Post Text with JS
अपनी पहचान से परे की पहचान को ढूंढती अच्छी रचना ...
12 अगस्त 2012 को 5:12 pm बजेअपनी पहचान से जुड़ी कवितायें प्रायः दार्शनिक हो जाती हैं..
13 अगस्त 2012 को 9:14 am बजेअलग-अलग मुकाम और स्थितियों में अपनी पहचान ही गुम हुई लगती है ! नए सिरे से तलाश करनी होती है अपनी हकीकत ! अपने वजूद की पहचान की कोशिशें होती रही हैं हमेशा से और अलग-अलग रास्तों से, ढंग से.... ! लेकिन आपकी यह कविता क्यों, किस चोट से उपजी है, समझने की चेष्टा कर रहा हूँ ! इतना कह सकता हूँ, कविता प्रभावित करती है !
13 अगस्त 2012 को 1:42 pm बजेसप्रीत---आ.
आप सभी का आभार,
19 सितंबर 2012 को 5:39 pm बजेसादर,
मुकेश कुमार तिवारी
पहली बार आपको ब्लॉग पर आई । आपकी कविताएं बहुत अच्छी लगीं । यह भी एक अलग सी प्रस्तुति बेटे की विवशता और छुपा सा आक्रोश ।
20 सितंबर 2012 को 9:41 pm बजेएक टिप्पणी भेजें