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कविता : इन्सान होना चाहता हूँ

सोमवार, 11 जून 2012

अब
मुझे कोई रूचि नही होती कि
बेमतलब ही झाँकता रहूँ
आसमान में
और अपने आसपास
मंडराते बादलों से करूं बातें
ज़मीन की ज़मीन पर रहने वालों की

मुझे
इस ऊँचाई से
अब ज़मीन पर देखना
फिर खोजते रहना बस्तियों को
या दूर तक पीछा करना
सर्पिली सड़कों का
नही लुभाता है

अब
नही सुहाता है
चिकने पन्नों पर
पसरी जिंदगी की
खुरदरी कहानियाँ पढ़ना
या कुछ ऐसा जिसमें
हकीकत से कोसों दूर की दुनिया ने
रची हो एक दुनिया अपने लिए

जब
कानों में गूंज रही हों
सरसराहटें
या नसें खिंच रही चटकते हुए
तब बातें करना
उस अज़नबी से
जिसकी और मेरी दुनिया
बिल्कुल अलग है
और हम वक्त काटने के लिए
सिर्फ कर रहे हैं
बातें करना का उपक्रम

मैं
उतर आना चाहता हूँ
इस ऊँचाई से
भीगना चाहता हूँ
पसीने में
कुछ देर के लिए ही सही
फिर से इन्सान होना चाहता हूँ
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 08-मई-2012 / समय : 02:30 दोपहर / इन्दौर-मुम्बई जेट एयरवेज 9W-2022

9 टिप्पणियाँ

बहुत खूब ... इंसान होना चाहता हूँ ... ये तो सभी चाहते हैं पर उस ऊंचाई पे जाके सब भूल जाते हैं ... गहरा एहसास लिए ...

11 जून 2012 को 12:53 pm बजे
vandana gupta ने कहा…

बेहद गहन और सशक्त अभिव्यक्ति

11 जून 2012 को 1:18 pm बजे
Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बहुत खूब ....शब्द शब्द में एक सचाई का आभास

11 जून 2012 को 6:21 pm बजे

अपने रंग में जीवन रंग लें हम..

11 जून 2012 को 7:57 pm बजे
M VERMA ने कहा…

इंसान होने की जद्दोजहद हो तो ऐसी बाते कहाँ लुभाती हैं

11 जून 2012 को 8:55 pm बजे
Satish Saxena ने कहा…

काम शैतानों के करके दिल मेरा अब भर गया !
अब तो यारो कसम से, इंसान होना चाहता हूँ !

19 जून 2012 को 10:19 am बजे
Archana Chaoji ने कहा…

चिकने पन्नों पर पसरी जिंदगी की खुरदरी कहानियाँ...भला किसे सुहाता है ..
और दुनिया ने रची दुनिया...बहुत सुन्दर ...

2 जुलाई 2012 को 10:42 pm बजे
समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना अभिव्यक्ति....आभार

17 जुलाई 2012 को 11:32 am बजे