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कविता : तुम्हारी खुश्बू से भीगते हुए

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

होली हो जाने के बावजूद भी न जाने क्यों आजतक वो रंगों की महक घुली हुई है मेरे इर्दगिर्द और मैं हर पल बस भीगता जाता हूँ और इन्हीं भीगे हुए पलों को जब आपसे बाँटना चाहा तो :-

रंग
थे यहाँ वहाँ फैले हुए
जैसे किसी बच्चे ने कैनवास
के साथ खेली हो होली ?
हर एक रंग खो रहा था
अपनी पहचान
दूसरे रंग में मिलते हुए

तुम
मुझे झाँकती मिली
हर एक रंग की ओट से
जैसे तुम्हें पसंद हो
एकीकार हो जाना /
गुम हो जाना कहीं
अपने भौतिक स्वरूप से ओझल होते हुए
और बदल जाना खुश्बू में
अपनी मौजूदगी के अहसास के साथ

मैं
तुम्हें महसूस कर लेता हूँ
अपने आस-पास
जब भी कोई झोंका छूकर गुजरता है
और फैली रहती है
तुम्हारी खुश्बू मेरे चारों ओर
आजकल, मैं नहाता नही हूँ
बस
भीगा रहता हूँ
तुम्हारी खुश्बू से
तर--तर
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 18-मार्च-2012 / समय : 10:15 रात्रि / घर
 

9 टिप्पणियाँ

बहुत सुंदर भाव लिए सारी रचनाएँ

20 अप्रैल 2012 को 10:24 pm बजे
Seema ने कहा…
vikram7 ने कहा…

sundar bhav liye behatariin rachanaayen

20 अप्रैल 2012 को 11:40 pm बजे
अनूप शुक्ल ने कहा…

सुन्दर खुशबूदार कविता।

21 अप्रैल 2012 को 8:14 am बजे

MAIN ... Sach much bhigo gayee aapki rachna ... Lajawab

21 अप्रैल 2012 को 3:53 pm बजे

रंग और भाव में डूबी रचनायें।

21 अप्रैल 2012 को 5:07 pm बजे
Unknown ने कहा…

colorfull lines with the meaning of life

8 फ़रवरी 2013 को 8:05 pm बजे