तुम्हारे
पसीने
की बू
मुझे अच्छी लगती है
किसी रूम फ्रेशनर से भी बेहतर
और चाहता हूँ कि
तुम यूँ ही
मेरे तेज होती साँसों में समा जाओ
कि हमारे बीच लाख नासमझियाँ हों
लेकिन फिर भी मैं
गुम हो जाना चाहता हूँ
तुम्हारी बाहों के दायरे में
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
लेकिन
तुम्हारे होने के बावजूद भी जब महकता है
कमरा किसी रुम फ्रेशनर से
और तुम
दूसरी ओर मुँह करके सो जाती हो
रात बेमानी हो जाती है
सुबह तक ख्वाब
बैचेनियों का सुरमा लगाये रह जाते हैं
मेरा अपना
पसीना गंधाने लगता है
--------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 20-मार्च-2012 / समय : 10:28 रात्रि / घर
मुझे अच्छी लगती है
किसी रूम फ्रेशनर से भी बेहतर
और चाहता हूँ कि
तुम यूँ ही
मेरे तेज होती साँसों में समा जाओ
इस
बात का
कोई
मतलब नही होता कि हमारे बीच लाख नासमझियाँ हों
लेकिन फिर भी मैं
गुम हो जाना चाहता हूँ
तुम्हारी बाहों के दायरे में
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
लेकिन
तुम्हारे होने के बावजूद भी जब महकता है
कमरा किसी रुम फ्रेशनर से
और तुम
दूसरी ओर मुँह करके सो जाती हो
रात बेमानी हो जाती है
सुबह तक ख्वाब
बैचेनियों का सुरमा लगाये रह जाते हैं
मेरा अपना
पसीना गंधाने लगता है
--------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 20-मार्च-2012 / समय : 10:28 रात्रि / घर
13 टिप्पणियाँ
आभार |
21 मार्च 2012 को 6:32 pm बजेdineshkidillagi.blogspot.com
सुन्दर भाव समेटे अच्छी रचना ।
21 मार्च 2012 को 7:00 pm बजेबहुत सुंदर भावमयी रचना...
21 मार्च 2012 को 7:41 pm बजेआपकी पोस्ट कल 22/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
21 मार्च 2012 को 9:04 pm बजेकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा - 826:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
Bahut khoobsoorat rachana!
21 मार्च 2012 को 9:24 pm बजेगहरा पर स्पष्ट।
21 मार्च 2012 को 10:10 pm बजेप्रवीण जी की बात से पूर्णतःसहमत हूँ गहरा मगर स्पष्ट...अभिव्यक्ति समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
22 मार्च 2012 को 12:57 am बजेhttp://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!
22 मार्च 2012 को 5:33 am बजेbahut badhiya bhavapoorn rachana ... badhai
22 मार्च 2012 को 2:50 pm बजेवाह! सीधी बात....
22 मार्च 2012 को 5:54 pm बजेbimbon ka adbhut prayog...bahut umda...
22 मार्च 2012 को 6:57 pm बजेसुंदर भावमयी रचना...
22 मार्च 2012 को 9:30 pm बजेबहुत सुन्दर .. रात बेमानी क्यों हो
6 अप्रैल 2012 को 5:39 pm बजेएक टिप्पणी भेजें