होली हो जाने के बावजूद भी न जाने क्यों आजतक वो रंगों की महक घुली हुई है मेरे इर्दगिर्द और मैं हर पल बस भीगता जाता हूँ और इन्हीं भीगे हुए पलों को जब आपसे बाँटना चाहा तो :-
रंग
थे यहाँ वहाँ फैले हुए
जैसे किसी बच्चे ने कैनवास
के साथ खेली हो होली ?
हर एक रंग खो रहा था
अपनी पहचान
दूसरे रंग में मिलते हुए
तुम
मुझे झाँकती मिली
हर एक रंग की ओट से
जैसे तुम्हें पसंद हो
एकीकार हो जाना /
गुम हो जाना कहीं
अपने भौतिक स्वरूप से ओझल होते हुए
और बदल जाना खुश्बू में
अपनी मौजूदगी के अहसास के साथ
मैं
तुम्हें महसूस कर लेता हूँ
अपने आस-पास
जब भी कोई झोंका छूकर गुजरता है
और फैली रहती है
तुम्हारी खुश्बू मेरे चारों ओर
आजकल, मैं नहाता नही हूँ
बस
भीगा रहता हूँ
तुम्हारी खुश्बू से
तर-ब-तर
-------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 18-मार्च-2012 / समय : 10:15 रात्रि / घर
रंग
थे यहाँ वहाँ फैले हुए
जैसे किसी बच्चे ने कैनवास
के साथ खेली हो होली ?
हर एक रंग खो रहा था
अपनी पहचान
दूसरे रंग में मिलते हुए
तुम
मुझे झाँकती मिली
हर एक रंग की ओट से
जैसे तुम्हें पसंद हो
एकीकार हो जाना /
गुम हो जाना कहीं
अपने भौतिक स्वरूप से ओझल होते हुए
और बदल जाना खुश्बू में
अपनी मौजूदगी के अहसास के साथ
मैं
तुम्हें महसूस कर लेता हूँ
अपने आस-पास
जब भी कोई झोंका छूकर गुजरता है
और फैली रहती है
तुम्हारी खुश्बू मेरे चारों ओर
आजकल, मैं नहाता नही हूँ
बस
भीगा रहता हूँ
तुम्हारी खुश्बू से
तर-ब-तर
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 18-मार्च-2012 / समय : 10:15 रात्रि / घर
9 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर भाव लिए सारी रचनाएँ
20 अप्रैल 2012 को 10:24 pm बजेBahut hi sunder kavita.....
20 अप्रैल 2012 को 10:54 pm बजेsundar bhav liye behatariin rachanaayen
20 अप्रैल 2012 को 11:40 pm बजेसुन्दर खुशबूदार कविता।
21 अप्रैल 2012 को 8:14 am बजेbahut sundar
21 अप्रैल 2012 को 12:40 pm बजेMAIN ... Sach much bhigo gayee aapki rachna ... Lajawab
21 अप्रैल 2012 को 3:53 pm बजेरंग और भाव में डूबी रचनायें।
21 अप्रैल 2012 को 5:07 pm बजेGreat sir
29 जून 2012 को 4:12 pm बजेcolorfull lines with the meaning of life
8 फ़रवरी 2013 को 8:05 pm बजेएक टिप्पणी भेजें