जब, तक हम साथ थे
उस एक रास्ते पर चलते हुये
मुझे हरपल लगता था कि
हम एकदूसरे के लिये ही बने है
शायद तुम भी,
ऐसा ही कुछ सोचती हो
न,
जाने मुझे ऐसा क्यों लगता था कि
मैं तुम पर थोप सकता हूँ
अपने विचारों को धूप की तरह /
तुम्हें घुले रख सकता हूँ
अपनी देहगंध में /
तुम पर अधिकार जता सकता हूँ
सिर्फ इस वज़ह से ही कि
हम साथ चल रहे हैं
और हमारे बीच पहचान बदलने लगी है
रिश्ते की सहूलियत में
मेरे,
विश्वास के परे
तुम किसी कोंपल की तरह
फूट पड़ीं और
अलग कर लिया खुद को
मेरी पहचान से मुक्त
मैं अब भी मुड़के देखता हूँ तो
तुम्हारे कदमों की छाप दिखाई देने लगी हैं
मेरे कदमों से अलग होती हुई
लेकिन रास्ता / दिशा अब भी एक ही है
मैं,
कुछ देर ठहरना चाहता हूँ
तुम्हारा इंतजार करते
---------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 03-फरवरी-2011 / समय : 11:27 रात्रि / घर
उस एक रास्ते पर चलते हुये
मुझे हरपल लगता था कि
हम एकदूसरे के लिये ही बने है
शायद तुम भी,
ऐसा ही कुछ सोचती हो
न,
जाने मुझे ऐसा क्यों लगता था कि
मैं तुम पर थोप सकता हूँ
अपने विचारों को धूप की तरह /
तुम्हें घुले रख सकता हूँ
अपनी देहगंध में /
तुम पर अधिकार जता सकता हूँ
सिर्फ इस वज़ह से ही कि
हम साथ चल रहे हैं
और हमारे बीच पहचान बदलने लगी है
रिश्ते की सहूलियत में
मेरे,
विश्वास के परे
तुम किसी कोंपल की तरह
फूट पड़ीं और
अलग कर लिया खुद को
मेरी पहचान से मुक्त
मैं अब भी मुड़के देखता हूँ तो
तुम्हारे कदमों की छाप दिखाई देने लगी हैं
मेरे कदमों से अलग होती हुई
लेकिन रास्ता / दिशा अब भी एक ही है
मैं,
कुछ देर ठहरना चाहता हूँ
तुम्हारा इंतजार करते
---------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 03-फरवरी-2011 / समय : 11:27 रात्रि / घर
13 टिप्पणियाँ
Saath,saath chalte hue,pahchaan alag ho to kya bura hai?Jeevan samantar rekhaon kee tarah to nahee hua na!
20 फ़रवरी 2011 को 11:46 am बजेAur ham chahke bhee kahan thahar sakte hain??
sunder kvita
20 फ़रवरी 2011 को 12:52 pm बजेpyar jab adhikar jmane lgta hai to pyar toot jata hai , is sach ko aapne bdi khoobsoorti se prstut kiya hai .
--- sahityasurbhi.blogspot.com
बहुत दिनों बाद आपको पढने का मौका मिला अच्छा लगा .
20 फ़रवरी 2011 को 12:55 pm बजेमैं अब भी मुड़के देखता हूँ तो
20 फ़रवरी 2011 को 2:57 pm बजेतुम्हारे कदमों की छाप दिखाई देने लगी हैं
मेरे कदमों से अलग होती हुई
लेकिन रास्ता / दिशा अब भी एक ही है
रास्ते अलग अलग भी हों, लेकिन दिशा एक ही हो तो मिलन कभी न कभी अवश्य होगा..सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
जो अपने होते हैं , वो प्रेरणा बनकर बहुत ऊँचाइयों तक ले जाते हैं , फिर खुद कों धीरे से अलग करके साथ साथ चलते हैं । कभी कभी ठहरकर इंतज़ार करना ही चाहिए ।
20 फ़रवरी 2011 को 3:22 pm बजेयही रिश्तो का सच है।
20 फ़रवरी 2011 को 5:36 pm बजे..बहुत बार बिना कहे किया हुवा कुछ अच्छा लगता है .... लाजवाब है मुकेश जी ...
20 फ़रवरी 2011 को 8:01 pm बजेबहुत ही सुंदर रचना...मन को छु गयी।
21 फ़रवरी 2011 को 5:34 pm बजे*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22- 02- 2011
21 फ़रवरी 2011 को 8:55 pm बजेको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
सीधे दिल तक पहुंची
22 फ़रवरी 2011 को 7:19 am बजेबहुत ही खुबसुरत प्रस्तुति......
22 फ़रवरी 2011 को 1:46 pm बजेसुंदर सरल प्रभावी सम्प्रेषण ......बेमिसाल रचना
23 फ़रवरी 2011 को 9:56 am बजेमानव सम्बन्धों का सरल चित्रण।
23 फ़रवरी 2011 को 10:08 pm बजेएक टिप्पणी भेजें