जब,
पूरी काईनात
सूरज को परे धकेल रही होती है
अपनी जिन्दगी से
तब,
तुम्हारे हाथों को अपने हाथ में लिये
मुझे यह लगता है कि
तुम हँस पड़ोगी अचानक खिलखिलाकर
मेरी किसी बात पर
और इस शाम की बेवा होने के पहले
गोद भर जायेगी
सुबह,
की जल्दी मुझे तो नही थी
कम-अज-कम
सोचता हूँ कि
यह रात यूँ ही थमी रह जाये
सुबह के साथ
वक्त की साजिशों का असर होने लगेगा
तुम्हारी मखमली छुअन में उभरने लगेगीं खारिशें
और
मेरे पेट में आग
कभी,
यह सोचता हूँ कि
हम यूँ ही खोये रहे आस्माँ ताकते हुये
इस रात की अवधि को ही
बदलकर रख दें चौबीस घंटों में
और दिन को हिस्से को
यूँ ही खोया रहने दें
सूरज के ख्वाब बुनते
-------------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 27-फ़रवरी-2011 / 11:15 रात्रि / घर
पूरी काईनात
सूरज को परे धकेल रही होती है
अपनी जिन्दगी से
तब,
तुम्हारे हाथों को अपने हाथ में लिये
मुझे यह लगता है कि
तुम हँस पड़ोगी अचानक खिलखिलाकर
मेरी किसी बात पर
और इस शाम की बेवा होने के पहले
गोद भर जायेगी
सुबह,
की जल्दी मुझे तो नही थी
कम-अज-कम
सोचता हूँ कि
यह रात यूँ ही थमी रह जाये
सुबह के साथ
वक्त की साजिशों का असर होने लगेगा
तुम्हारी मखमली छुअन में उभरने लगेगीं खारिशें
और
मेरे पेट में आग
कभी,
यह सोचता हूँ कि
हम यूँ ही खोये रहे आस्माँ ताकते हुये
इस रात की अवधि को ही
बदलकर रख दें चौबीस घंटों में
और दिन को हिस्से को
यूँ ही खोया रहने दें
सूरज के ख्वाब बुनते
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 27-फ़रवरी-2011 / 11:15 रात्रि / घर
17 टिप्पणियाँ
ख्वाब सूरज के, रात का चिन्तन, ये सब गुँथे जीवन के चारों ओर।
3 मार्च 2011 को 8:10 am बजेBeautiful imagination ...Let's do it !
3 मार्च 2011 को 8:49 am बजेअच्छी रचना है...
3 मार्च 2011 को 8:54 am बजेउम्दा रचना...
3 मार्च 2011 को 9:28 am बजेआहा गज़ब का ताना बाना बु्ना है वक्त की साज़िशो के खिलाफ़्।
3 मार्च 2011 को 1:22 pm बजेआपका अंदाजे बयां बेहद प्रभावी है। हार्दिक बधाई।
3 मार्च 2011 को 3:59 pm बजे---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
वाह ...बहुत ही सुन्दर भावों से सजी अनुपम प्रस्तुति ।
3 मार्च 2011 को 4:59 pm बजेWaqt kee saazishen...shaam ka beva hona...sooraj ke khwab!Kya kamal kee kalpana shaktee hai!
3 मार्च 2011 को 5:36 pm बजेइस रात की अवधि को ही
3 मार्च 2011 को 5:44 pm बजेबदलकर रख दें चौबीस घंटों में
और दिन को हिस्से को
यूँ ही खोया रहने दें
सूरज के ख्वाब बुनते
वाह बहुत खूब ...बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने इन भावों को समेटा है ...बेहतरीन
बहुत ही खुबसूरत अहसास, बधाई
3 मार्च 2011 को 10:21 pm बजेमेरे पुणे निवासी मित्र श्री विश्वास काणे इन्होंने कई बार मेरे साथ यात्रायें की हैं और मेरी रचना-प्रक्रिया को करीब से देखा है। ये किसी ब्लॉग से तो नही जुड़े हैं लेकिन कवितायें पढ़ते हैं और ई-मेल से अपने प्रतिक्रिया भी भेजते हैं।
4 मार्च 2011 को 12:58 pm बजेइस कविता पर मिली उनकी प्रतिक्रिया आपकी नज़र है :-
Dear Mukesh,
Thanks A Lot !! I am expecting the same from you on this Marathi kavita!!
You’re is also ultimate one !!! while reading your kavita I have experienced the trailer of moral of subject .
Regards,
Vishwas Kane
kanevishwas@yahoo.com
मेरे वरिष्ठ सहकर्मी श्री राजन अम्बर्डेकर जिन्होंने मेरी रचना-प्रक्रिया को करीब से देखा है। मेरी कवितायें सुनते हैं / पढ़ते हैं और कभी-कभी ई-मेल से भी अपनी प्रतिक्रिया भेज देते हैं।
4 मार्च 2011 को 1:02 pm बजेइस कविता पर मिली उनकी प्रतिक्रिया आपकी नज़र है :-
Very Very Good,
Ambardekar
ambardekar.rajan@mahindra2wheelers.com
मेरे मित्र श्री सदानन्द पिम्पळीकर जिनके साथ करीब पच्चीस वर्षों का साथ हैं और मेरी शुरूआती दौर की कविताओं के पहले प्रशंसकों मेम से एक। मेरी कवितायें सुनते हैं / पढ़ते हैं और कभी-कभी ई-मेल से भी अपनी प्रतिक्रिया भेज देते हैं।
4 मार्च 2011 को 1:07 pm बजेइस कविता पर मिली उनकी प्रतिक्रिया आपकी नज़र है :-
प्रीय मुकेश,
तुझ्या कवितेत खूप वज़न आहे. वज़नाचा काटा तुटून ज़ाइल.इतक्या कल्पना डोक्यात कशा येतात?
मस्त.
सदानन्द पिम्पळीकर
yashyog1999@yahoo.com
बहुत ही सुन्दर भावों से सजी अनुपम प्रस्तुति| धन्यवाद|
8 मार्च 2011 को 9:23 am बजेअहसासों और भावों का शब्दों में बहुत सुन्दर संयोजन..बहुत सुन्दर
8 मार्च 2011 को 2:42 pm बजेsunderta se ehsaaso ko piroya hai.
8 मार्च 2011 को 8:40 pm बजेआप सभी सुधि जनों का आभार!!
14 मार्च 2011 को 11:30 am बजेसादर,
मुकेश कुमार तिवारी
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