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माया, नज़रिया और ज्ञान

बुधवार, 21 अक्टूबर 2009

हम,
सिर्फ पैकिंग बदलने को
बदलाव / परिवर्तन का नाम दे देते हैं
और खुद भी भ्रमित हो जाते हैं
शायद,
माया इसी को कहते हैं

हम,
जितना देख पाते हैं
बस वहीं समेट लेते हैं दुनिया को
और सिखाते हैं क्षितिज की परिभाषा
शायद,
नज़रिया इसी को कहते हैं

हम,
जितना जानते हैं
उससे एक इंच भी आगे बढ़े बगैर
देने लगते हैं सीख आसमान छूने की
शायद,
ज्ञान इसी को कहते हैं
-------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक १०-ऑक्टोबर-२००९ / समय : १०:१५ रात्रि / ऑफिस

22 टिप्पणियाँ

हम,
सिर्फ पैकिंग बदलने को
बदलाव / परिवर्तन का नाम दे देते हैं
और खुद भी भ्रमित हो जाते हैं
शायद,
माया इसी को कहते हैं

jee bilkul sahi .... maya isi ko kahte hain....

-------------
Mukeshji.... mera mobile kho gaya hai..... to naya number liya hai... 9984768524...

21 अक्टूबर 2009 को 1:03 pm बजे
Simply Poet ने कहा…

wow..you have an awesome collection of poems do check out
www.simplypoet.com,a place where poets/writers interact,comment,critique and learn from each other..it would provide a larger audience to your blog!!

21 अक्टूबर 2009 को 1:07 pm बजे
ओम आर्य ने कहा…

मुकेश जी
कितनी अच्छी बात कह दी है आपने यह उतना ही सत्य है जितना हमारा संसारिक जगत मे होना है .......इन्ही चीजो से तो हम बने हुये है और उनका स्वरुप जो आपने बतायी है वह बिल्कुल सत्य है ......सादर

ओम आर्य्

21 अक्टूबर 2009 को 1:27 pm बजे

Maya,Jnyan aur najriya ki ek bahut hi badhiya paribhash..dhanywad mukesh ji sundar baaten..

21 अक्टूबर 2009 को 1:49 pm बजे

achhi paribhashayen di hain aapne. bahut khoob, gyan vardhak.

21 अक्टूबर 2009 को 3:25 pm बजे

माया, नजरिया और ज्ञान ,,,,,,,,,,,,, सच में तीनो भ्रमित करते हैं .......... बहूत ही गहरी सोच छिपी नज़र अति है इस रचना में ....

21 अक्टूबर 2009 को 3:36 pm बजे

"माया, नज़रिया और ज्ञान"

बहुत ही गहन तत्व चर्चा है. शुभकामनाएं.

रामराम.

21 अक्टूबर 2009 को 4:45 pm बजे
रंजू भाटिया ने कहा…

माया नजरिया और ज्ञान यह सिर्फ हमारे ही बनाए हुए होते हैं और अक्सर हम इसी को सच मान लेते हैं आपने मुकेश जी इसी सच्चाई को बखूबी अपनी इस रचना में उतार दिया है ...सबसे अधिल पंक्तियाँ ज्ञान के ऊपर भायी क्यों की यह दूसरों को देना बहुत सरल लगता है ..और सही भी क्यों की हम सिर्फ उतने ही सच से वाकिफ होते हैं जितना सच हम समझना चाहते हैं ...एक और सुन्दर मोती आपकी कलम से ...

21 अक्टूबर 2009 को 4:50 pm बजे
M VERMA ने कहा…

नए परिभाषाओ के बीच सामाजिक सरोकारो से रूबरू रचना. नजर, नजरिया और सोच को परिवर्तन करके ही नजर, नजरिया और रचनात्मक सोच पा सकते है.

21 अक्टूबर 2009 को 5:27 pm बजे
Rajeysha ने कहा…

वाह .. बहुत बढिया !!

22 अक्टूबर 2009 को 12:49 am बजे
Unknown ने कहा…

Wow !!
You came so close in defining a thin line between material and im-material.

Our knowledge will always be limited, our vision will always be within defined territory of existing knowledge and Maaya's main aim to keep our illusions alive in a very realistic way.

Only WISDOM can go beyond these and only a learned one can lead others to the source of wisdom.

I bow my head to these self-explanatory notes, no matter if we call it poem or wisdom.

---
Warm Regards
Naveen

22 अक्टूबर 2009 को 2:44 pm बजे
Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

कितनी गहरी सोच.....
लाजवाब रचना!!

22 अक्टूबर 2009 को 8:08 pm बजे
शरद कोकास ने कहा…

अच्छी परिभाषायें हैं

23 अक्टूबर 2009 को 11:38 pm बजे
Prem Farukhabadi ने कहा…

Mukesh ji,
aap jis tasalli aur sakoon se likhte hain,vahi tasalli aur sakoon paathak ko mil jati hai,aisa main maanta hoon.aapki ye khaasyit sachmuch sarahneey hai .badhai!

24 अक्टूबर 2009 को 11:49 am बजे
Pritishi ने कहा…

Awesome!
This is one of your best Poems that I have liked ! Its your masterpiece, I would say ! Too good!!

RC

26 अक्टूबर 2009 को 8:24 pm बजे
Smart Indian ने कहा…

"माया, नज़रिया और ज्ञान" सुन्दर परिभाषा!

27 अक्टूबर 2009 को 7:37 pm बजे
गुंजन ने कहा…

भाई,


माया का चष्मा ज्ञान को भ्रमित कर नज़रिया बदल देता है।

अच्छी परिभाषायें दी हैं।

जीतेन्द्र चौहान

28 अक्टूबर 2009 को 6:58 pm बजे
shikha varshney ने कहा…

हम,
सिर्फ पैकिंग बदलने को
बदलाव / परिवर्तन का नाम दे देते हैं
और खुद भी भ्रमित हो जाते हैं
शायद,
माया इसी को कहते हैं
वह क्या बात कही है....बहुत बढ़िया. ब्लॉग पर आने का बहुत शुक्रिया.

28 अक्टूबर 2009 को 7:25 pm बजे
Urmi ने कहा…

बहुत ही सुंदर, लाजवाब और शानदार रचना लिखा है आपने! बहुत ही बढ़िया बात कही है आपने ! इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

29 अक्टूबर 2009 को 8:42 am बजे

आप सभी का धन्यवाद और आभार!

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

29 अक्टूबर 2009 को 7:37 pm बजे