जन्मदिवस जब भी आता है, खुशियाँ समेटे हुये आता है और हम तो वैसे भी भाग्यशाली हैं साल में कुल जमा तीन ठौं जन्मदिवस मनाते रहे अब तक। पहिला चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी को गोबर से लीपी हुई जगह, आटे से बनाये चौक, गौरी पूजा, गुलगुलों का भोग और मीठा दूध बुआ के हाथों पीते रहे। दूसरा वो जो अंग्रेजी महिने अप्रैल की तारीख ६ को जिस दिन एक मज़दूर बस्ती के जच्चाखाना में हमारी किलकारी गूंजी थी। तीसरा वो मई माह की १४ तारीख को जिस दिन करीब ११ महिने छोटी अवस्था में स्कूल ज़बरिया ठेले गये और सारे सरकारी खाते-बही में अब यही दर्ज है और इसी दिन रिटायर हो जाना है, कोई नही समझना वाला इस दर्द को।
बहरहाल यह तो हुई बात अब तक मनाये हुये जन्मदिवसों की जिस पर हमारा अपना कोई कंट्रोल नही था, बस रस्मी तौर निभाना भर था। चलिये छो़ड़िये जो हुआ तो हुआ, अब आपसे कहना जा रहा हूँ, अगस्त माह की १३ तारीख को एक और जन्मदिवस है और इस बार यह पूरा का पूरा हमारा ही है, इसी दिन हम पहली बार ब्लॉग पर उतरे थे ( वैसे यह सच कहने में कोई बुराई नही है इसके पहले एक बार हम और हाथ-पांव मार चुके हैं वेबदुनिया के ब्लॉग
मेरी कविताएँ पर) एक दिन
रचनाकार पर की किसी टिप्पणी को सहेजते हुये
श्री रवि रतलामी जी मेरे ब्लॉग पर आये और उन्होंने मुझे या तो वर्ड-प्रेस या ब्लॉगस्पॉट से जुड़ने की सलाह दी, नतीजतन आज हम
कवितायन के माध्यम से अपने विचारों को कविताओं में बदल आप तक ठेल रहे हैं।
इस पहले पड़ाव तक आते हुये जो कुछ जमा हुआ है या हिस्से में आया है उसका लेखा-जोखा ( कोई लेखा-संपरीक्षक/ऑडिटर तो नही दे पायेगा, आपको हमें ही झेलना होगा) आपके समक्ष है :-
कुल पोस्ट : 82
नज़र हुई टिप्पणियाँ : 572 ( पार्टी तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करती है )
अब इस सफर की शुरूआत हुई पहली किलकारी "
कॉन्फ्रेंस" से जो एक हालिया अनुभव को कविता में बदल कर धकियाया गया था, जो कि १३-अगस्त-२००८ से लगाकर अगली पोस्ट ०६-ऑक्टोबर-२००८ तक भी बिना किसी टिप्पणी के मौजूद थी(कितनों ने पढ़ी होगी यह तो नही कह सकता, अलबत्ता हमारी मौजूदगी हो गई थी).ब्लॉगस्पॉट पर।
हौसला अफ्ज़ाई की पहल की श्री प्रदीप मनोरिया जी ने अपनी टिप्पणी हमारे दूसरे कदम "
अवसाद ग्रस्त लड़की" से पार्टी उनकी बरकत में बढो़त्तरी की दुआयें खुदा से करती हैं। फिर क्या था उस एक टिप्पणी ने तो रास्ते खोल दिये और हमारे मंसूबों को भी पर लगा दिये। ऐसा लगने लगा कि सभी जैसे भोर में किसी न्यूज पेपर का इंतजा़र करते हैं वैसे ही पलक पांवड़े बिछाकर बैठे होंगे कि अभी हम सुबह के माथे पर टीक देंगे एक कविता और उनका दिन सफल हो जायेगा। फिर क्या एक पर एक कविता पेलने लगे, कुल नौ ठौं कविता पेलने बाद भी टिप्पणी वहीं की वहीं। और ब्लॉग पर टेम्पलेट और ढेर सारे बिल्ले( मुआफ कीजियेगा बिल्लियों वाले नही) "चिट्ठाजगत", ब्लॉगवाणी, हिन्दी ब्लॉग इत्यादि देख मन मसोस कर रह जाता था, क्या करें और कुछ पता भी नही था। अब भी मेरा ब्लॉग के बारे में ज्ञान काले अक्षर से आगे नही बढ़ा था।
ब्लॉग पर विजिट बढाने के नुस्खे खूब पढ़े पर ऐसा लगा कि तरीका कोई और ही काम आयेगा, तभी अचानक
श्री बृजमोहन श्रीवास्तव साहब का आशीर्वाद मिला और एक नेक सलाह भी किसी सट्टे के नम्बर की तरह कि भईया यह गोरखधंधा समझ गये तो सफलता जरूर मिलेगी। इसके बाद ही हमारी एक कविता "
माँ, केवल माँ भर नही होती" को सिर्फ टिप्पणियाँ ही नही मिली बल्कि
श्री गिरीश बिल्लौरे "मुकुल" जी ने उसे अपनी एक लाईन की चर्चा में शामिल कर जो मान दिया वह किसी तिनके के सहारे सा आया, डूबने से बचना था सो बच गये। अब तक चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी पर हमारा दाखिला हो चुका था।
जिस कविता ने हमारी जिन्दगी बदल दी वो थी "
लड़्कियाँ तितली सी होती हैं" अगर
श्री अनूप जी शुक्ल नैनीताल नही गये होते और यह पोस्ट नही पढी होती तो शायद हम भी ब्लॉग से विमुख हो गये होते कि भाई यह क्या हुआ कि खूब रात-रात जाग के सोचा, लिखा फिर कम्प्यूटर पर उँगलियाँ तोड़ी और किसी ने देखा भी नही। पार्टी अपनी कामयाबी में श्री अनूप जी शुक्ल के योगदान को नही भूल सकती कभी कि बाद की १० चर्चाओं में मेरी कविताओं को स्थान देकर मेरा मान बढ़ाया।
(१)
लड़कियाँ तितली सी होती हैं(२)
तार तार सच(३)
समय से तेज चलती घड़ियाँ (४)
तुम्हारे कमरे से निकलने के बाद (५)
कण्डोम क्या होता है(६)
सुकून से सोने के लिये(७)
जब गुम हो जायें लिपियाँ(८)
क्षितिज के पार(९)
कैसी लगती हो?(१०)
एक तौलिये वाले लोगइसके बाद
हिन्द-युग्म पर आयोजित मार्च माह की यूनिकविता प्रतियोगिता में अपनी कविता "
चिड़िया हमारे घर आती थी कभी" के लिये द्वितीय स्थान मिलने का प्रोत्साहन हमें अप्रैल-२००९ के यूनिकवि के सम्मान के साथ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाया कविता "
सिमटते आँगन बंटती दहलीज " के लिये। हिन्द-युग्म इसी तरह से अपने अभियान में कामयाब हो इसी भावना के साथ
श्री शैलेश भरतवासी जी का विशेष आभार।
रंजना भाटिया(रंजू) मैम के बारे में क्या कहूं क्या ना कहूं, मेरी कविताओं को उन्होंने एक पारखी की नज़र से देखा, कमोबेश सभी पोस्टों को पढ़ा और अपनी टिप्प्णियों से नवाज़ा है। उनकी टिप्प्णियों ने मुझे नारी को नारी सुलभ दृष्टीकोण से देखने और उस पीड़ा को महसूसने की समझ दी
जिनकी(ब्लॉगर्स) शुभकामनाओं के बिना इस मुकाम तक पहुँच पाना असंभव था सुश्री
निर्मला कपिला ,
रश्मिप्रभा ,
आर. सी.,
राज ,
उर्मी चक्रवर्ती , पूजा ,
वन्दना ,
शमा ,
लता हया ,
क्षमा साधना ,
आशा जोगलेकर ,
शोभना चौरे , रंजना, ज्योत्सना पाण्डेय, मोना परसाई "प्रदक्षिणा" और आदि। तथा सर्वश्री
समीरलाल ,
ज्ञानदत्त ,
ताऊ रामपुरिया ,
अनुराग शर्मा स्मार्ट इंडियन ,
डॉ. अनुराग ,
देवेन्द्र द्विज ,
मुफ्लिस साहब ,
ओम आर्य ,
बृजमोहन श्रीवास्तव ,
मेजर साहब गौतम राजऋषि,
दिगम्बर नासवा ,
आनन्दवर्धन ,
प्रदीप मनोरिया ,
नवीन शर्मा ,
विक्रम जी ,
डॉ. भूपेन्द्र कुमार सिँह , मंसूरअली हाश्मी , संजीव मिश्रा ,
विवेक प्रजापति (जो कि "नज़र" के नाम से अधिक जाने जाते हैं) ,
रवि श्रीवास्तव ,
एम. के. वर्मा साहब ,
अमिताभ श्रीवास्तव आदि।
अपने पहिले ब्लॉग जन्मदिवस पर आपके आशीर्वाद का आकांक्षी,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी