सिर्फ़,
हम ही नही होते हैं वहाँ
तलाशते मौका शाम गुजारने का
किसी कान्फ़्रेंस के नाम पर
ये भी थे / वो भी थे
और भी कई लोग थे जिन्हें हम
इतना तो पहचानते हैं कि हाथ मिलाया जा सके
उन्हें जानना उतना जरूरी नही
ऐसा लगता है कि
शनिवार की शाम या किसी और शाम को
सिर्फ़ हम ही नही होते हैं
बिना काम के
या तलाशते मौका गुजारने का शाम यूँ ही
सच से भागते हुये या खोजते हुये नये आयाम
और भी लोग हैं
इस मर्ज के मारे हुये
------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०९-अगस्त-2008
सदस्यता लें
संदेश (Atom)