कविता : खेल
शनिवार, 29 फ़रवरी 2020
कविता : अमराई में बारूद
रविवार, 3 मार्च 2019
हाँ,
मैं भूल गया हूँ मुस्कुराना/
अपने से बातें करना/
कहकहे लगाना/
या तुम्हारे गेसुओं में फिराते उँगलियाँ
भूल जाना जीने की जिल्लत
जब से आम पर बौराई है बारुद
खलिहानों में उग आई हैं खंदकें
मैं,
दफ़्न हो गया हूँ
वहीं, जहाँ दिखा था
आखिरी बार मुस्कुराता
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मुकेश कुमार तिवारी
02-March-2019
@kavitaayan
कविता : बेमानी सन्दर्भ
रविवार, 25 नवंबर 2018
मेरे लिए
फिर नही लौटा
बयारो वाला मौसम
लाख चाहने पर भी
मिट्टी से नही उठी
सौंधी गमक
न ही इन्द्रधनुष खिंचा
वितान पर
नही आई ठिठुरन अबके
मेरी दालान में
धूप कन्नी काटती रही
आँगन से
किस अजीब से
मौसम को जी रहे हैं हम
सन्दर्भ सभी
बेमानी से हो आए हैं
अब आदमी की बात करो तो
जी धक्क सा करता है
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : 25-नवम्बर-2018/समय : 18:55/इन्दौर-गुना यात्रा में
कविता : पड़ाव
शनिवार, 1 जुलाई 2017
करीब साढे नौ सालों के बाद अचानक फ़िर अपने ब्लॉग कि याद आई है.....
उम्र ने बढते हुये
द्दर्ज कर दी थी पेशानियों पे
अपनी मौजुदगी
और सफ़ेदी बढते हुये
कह ही दिया था
कि बहुत हो चुका सब
मन था कि
मानता ही नही
कभी यहाँ कभी वहाँ
अखबारों से शुरु हुआ सिलसिला
थमा तो व्हात्सएप पर
इस बीच पत्रिकायें थै तो
कभी फ़ेसबुक
लेकिन
छाँवभरी गोद लेकर
आज फ़िर याद आया है
ब्लॉग
किसी पड़ाव की तरह
एक थका देने वाली
जीवनयात्रा में
एक सुकून भरा ठहराव लिये....
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : 01-जुलाइ-2017 / समय : 04:40 दोपहर / घर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
उम्मीदों की सलीब
रविवार, 28 अगस्त 2016
एक बोझिल सुबह
जिसमें समेटना है दिन का विस्तार
इसके पहले कि मायूसियाँ
शाम के साथ
लिपटने लगे पहलु के साथ
दौड़ना है दिनभर
काँधे पर टाँगें
उम्मीदों की सलीब ...
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक 28-अगस्त-2016/सुबह : 09:15/घर
कविता : पंख
मंगलवार, 3 सितंबर 2013
अपने पंखों को
अन्जान था
आकाश की गहराइयों से
बस
धरती के छोर पर ही
खत्म हो जाती थी
दुनिया मेरी
एक सुबह
आकाश ने रचे
मेरे लिए
तब कहीं जाके
मेरे पंखों ने लांघी
क्षमता की दहलीज
और समूचा
आकाश सिमट आया
मेरी उड़ान में
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : ०३-सितम्बर-२०१३ / १०:४० रात्रि / घर
कविता : उम्र के दोराह पर......
रविवार, 7 अप्रैल 2013
मैं
चाहता हूँ
फिर से खेलना
मिट्टी से बनाना घर
अपने सपनों का
और
रचना एक छोटी सी दुनिया......शांत
यहाँ
बहुत शोर है
और मोटी मोटी किताबें
होमवर्क / एक्जाम्स में फेल होने का खौफ़
बागीचे में
तितलियों के पीछे
या जमा करते हुए चिडियों के पंख
या बहुत दूर तक भागते हुए
किसी पतंग का पीछे करते
तो मेरा बचपन गुम हो रहा है
और बड़ा होकर क्या करना है
सामने खड़ा है
किसी यक्ष प्रश्न सा
इतना भ्रमित होता हूँ
इस दोराहे पर
अपने बचपन में
उन्हीं सुहाने दिनों में
अपनी कॉमिक्स की दुनिया में
दादा की उंगली पकड़
फिर से घूमता रहूँ
अपनी लॉन में और सीखता रहूँ चलना
अपने कदमों पर
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 17-नवम्बर-2012 / समय : 01:00 दोपहर / अमन खान के लिए