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कविता : बेमानी सन्दर्भ

रविवार, 25 नवंबर 2018

मेरे लिए
फिर नही लौटा
बयारो वाला मौसम
लाख चाहने पर भी
मिट्टी से नही उठी
सौंधी गमक
न ही इन्द्रधनुष खिंचा
वितान पर
नही आई ठिठुरन अबके
मेरी दालान में
धूप कन्नी काटती रही
आँगन से
किस अजीब से
मौसम को जी रहे हैं हम
सन्दर्भ सभी
बेमानी से हो आए हैं
अब आदमी की बात करो तो
जी धक्क सा करता है
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : 25-नवम्बर-2018/समय : 18:55/इन्दौर-गुना यात्रा में

2 टिप्पणियाँ

कविता रावत ने कहा…

आदमी की तरह मौसम भी होता जा रहा है
बहुत सही

26 नवंबर 2018 को 4:54 pm बजे
Vinod kar ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है. 15 जून 2020 को 12:53 am बजे