मैं
जब तक नही जानता था अपने पंखों को
अन्जान था
आकाश की गहराइयों से
बस
धरती के छोर पर ही
खत्म हो जाती थी
दुनिया मेरी
एक सुबह
आकाश ने रचे
मेरे लिए
तब कहीं जाके
मेरे पंखों ने लांघी
क्षमता की दहलीज
और समूचा
आकाश सिमट आया
मेरी उड़ान में
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : ०३-सितम्बर-२०१३ / १०:४० रात्रि / घर
9 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुंदर-है आपकी ये उडान- ...बहुत सुंदर प्रस्तुति-
3 सितंबर 2013 को 11:32 pm बजे
4 सितंबर 2013 को 11:00 am बजेबहुत अच्छी रचना ! बधाई स्वीकार करें !
हिंदी
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..
4 सितंबर 2013 को 12:33 pm बजेआकाश सिमटना बन्द कर दे, पंखों को मार्ग देता रहे बस।
5 सितंबर 2013 को 8:21 am बजेइसे षड्यंत्र क्यों कहना .... वो तो आमंत्रण था आकाश का .. वो जानता था आपकी क्षमता ...
5 सितंबर 2013 को 2:35 pm बजेइन पंखों का आकाश मापने का हौसला सलामत रहे !
6 सितंबर 2013 को 10:17 am बजेबहुत सुंदर कृति मन को मोहने वाली
8 सितंबर 2013 को 12:06 pm बजेविनय प्रजापति 'नज़र'
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_28.html
28 मई 2014 को 10:13 am बजेक्या बात है, सुन्दर रचना....
28 मार्च 2020 को 1:32 pm बजेएक टिप्पणी भेजें