जबसे,
दिखने
और बिकने के संबंधों को
गणित ने परिभाषित किया
और अर्थशास्त्र के
सिद्धाँतों ने समझाया कि
बिकने के लिए दिखना सम्पूरक है
कपड़े छोटे होने लगे
ज़ुराबें झाँकने लगी पाँयचों से बाहर
फिर ज़ुराबों पे
लिखा जाने लगा ब्राण्ड
अब सिर्फ ज़ुराबें ही पहनी जाती है
और पतलून
खोने लगी है अपनी उपयोगिता
अब बाहर झाँकने लगे है
मैं डरने लगा हूँ
बाज़ार के बढ़ते हुए दखल से
---------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 05-फरवरी-2012 / समय : 10:40 रात्रि / घर
गणित ने परिभाषित किया
और अर्थशास्त्र के
सिद्धाँतों ने समझाया कि
बिकने के लिए दिखना सम्पूरक है
कपड़े छोटे होने लगे
पहले,
पतलून
ऊँची हुई तोज़ुराबें झाँकने लगी पाँयचों से बाहर
फिर ज़ुराबों पे
लिखा जाने लगा ब्राण्ड
अब सिर्फ ज़ुराबें ही पहनी जाती है
और पतलून
खोने लगी है अपनी उपयोगिता
अंतर्वस्त्रों,
पर सजे लेबल अब बाहर झाँकने लगे है
मैं डरने लगा हूँ
बाज़ार के बढ़ते हुए दखल से
---------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 05-फरवरी-2012 / समय : 10:40 रात्रि / घर
6 टिप्पणियाँ
Bahut khoob!
21 फ़रवरी 2012 को 6:26 pm बजे"Bikhare Sitare"pe aayen! Apne heart attack ke bareme likh rahee hun.
aapka dar sahi hain .......
21 फ़रवरी 2012 को 7:48 pm बजेयकीनन बाजार का दखल अंतर्वस्त्रों तक हो गया है.
21 फ़रवरी 2012 को 8:18 pm बजेबहुत सुन्दर रचना
बाजार हावी है...सुन्दर अभिव्यक्ति इस भाव की...
21 फ़रवरी 2012 को 10:43 pm बजेसच कहा, यही तो हो रहा है।
22 फ़रवरी 2012 को 7:01 am बजेसच में कभी कभी दर लगने लगता है .. कहाँ रुकेगी ये दखल ...
23 फ़रवरी 2012 को 2:01 pm बजेएक टिप्पणी भेजें