प्रेम,
अपने को व्यक्त करने के लिए
केवल सौन्दर्य को ही
नही खोजता
वह किसी भी रूप में
तलाश लेता है
स्वयं को अभिव्यक्त करने का रास्ता
मैंने महसूस की है
निश्छल झरनों में
अन्जान पहाड़ी के किसी निर्झर कोने से
जब,
कोई नदी
प्रकृति के मोह में
छलाँग लगा देती है
किसी अनछुई बियाबाँ तलहटी में
खुद धुंध में बदलते हुए विलीन हो जाती है
मिस्ट में बदलकर हवा में कहीं
और
पत्थरों के सीने पर
फूटने लगती हैं कोंपलें
वादियों में ध्वनित होने लगता है संगीत
बस,
प्रेम अंकुरित हो जाता है
---------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 07-जनवरी-2012 / ऑफिस / समय : 12:35 दोपहर
अपने को व्यक्त करने के लिए
केवल सौन्दर्य को ही
नही खोजता
वह किसी भी रूप में
तलाश लेता है
स्वयं को अभिव्यक्त करने का रास्ता
प्रेम
की विशुद्ध
अभिव्यक्ती
मैंने महसूस की है
निश्छल झरनों में
अन्जान पहाड़ी के किसी निर्झर कोने से
जब,
कोई नदी
प्रकृति के मोह में
छलाँग लगा देती है
किसी अनछुई बियाबाँ तलहटी में
खुद धुंध में बदलते हुए विलीन हो जाती है
मिस्ट में बदलकर हवा में कहीं
और
पत्थरों के सीने पर
फूटने लगती हैं कोंपलें
वादियों में ध्वनित होने लगता है संगीत
बस,
प्रेम अंकुरित हो जाता है
---------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 07-जनवरी-2012 / ऑफिस / समय : 12:35 दोपहर
17 टिप्पणियाँ
और
25 जनवरी 2012 को 7:06 pm बजेपत्थरों के सीने पर
फूटने लगती हैं कोंपलें
वादियों में ध्वनित होने लगता है संगीत
बस,
प्रेम अंकुरित हो जाता है..
sach prem ki taakat ko kisi bhi taraju mein nahi taula jaa sakta hai..
Prem ki sundar abhivykati...
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति..
25 जनवरी 2012 को 7:11 pm बजेSach kaha hai ... Prem ki gaagar chalak hi jaati hai ... Bhavpoorn ... Lajawab prastuti ...
25 जनवरी 2012 को 7:13 pm बजेवाह क्या बात है बेहतरीन भाव संयोजन लाजवा प्रस्तुति
25 जनवरी 2012 को 8:23 pm बजेBahut sundar rachana!
25 जनवरी 2012 को 10:58 pm बजेKabhee mere blog pe bhee padharen!
Gantantr Diwas kee anek shubh kamnayen!
25 जनवरी 2012 को 10:58 pm बजेGantantr diwas mubarak ho!
25 जनवरी 2012 को 11:00 pm बजेप्रेम की अभिव्यक्ति सौन्दर्य की परतों से कहीं गहरी होती है, जो समझ ले, वही पाने का अधिकारी है..
26 जनवरी 2012 को 8:10 pm बजेपत्थरों के सीने पर
26 जनवरी 2012 को 11:22 pm बजेफूटने लगती हैं कोंपलें
वादियों में ध्वनित होने लगता है संगीत
बस,
प्रेम अंकुरित हो जाता है
आदरणीय तिवारी जी
प्रेम की सही व्याख्या की है आपनें इस रचना के माध्यम से
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
पत्थरों के सीने पर
28 जनवरी 2012 को 6:35 pm बजेफूटने लगती हैं कोंपलें
वादियों में ध्वनित होने लगता है संगीत
बस,
प्रेम अंकुरित हो जाता है
वाह ..बहुत सुन्दर भाव ...
कल 14/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
13 फ़रवरी 2012 को 3:57 pm बजेधन्यवाद!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
14 फ़रवरी 2012 को 7:04 am बजेप्रेम चहुँ ओर व्याप्त है...बस तबियत भरी नजर की जरुरत है महसूस करने की..सुन्दर रचना...
14 फ़रवरी 2012 को 8:04 am बजेपत्थरों के सीने पर
14 फ़रवरी 2012 को 8:23 am बजेफूटने लगती हैं कोंपलें...
बहुत ही अच्छे से परिभाषित किया है आपने प्रेम को,
सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत ही खूबसूरत एवं मौलिक प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! बधाई आपको !
14 फ़रवरी 2012 को 9:08 am बजेबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
14 फ़रवरी 2012 को 12:16 pm बजेवाह |||
14 फ़रवरी 2012 को 3:27 pm बजेबहुत ही सुन्दर.
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति है....:-)....
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