रिश्तों को,
जिन्दगी की इस हद्द के बाद
मैं समझने लगा हूँ कि
यहाँ अपना-पराया
कुछ नही होता है
यह केवल एक भ्रम है
और जिसमें
न केवल मैं,
न तुम
हम सभी घिरे हैं कमोबेश
केवल
सन्दर्भ बदलते हैं
वक्त के साथ
और हम तुम वहीं होते हैं
घिरे हुए
और कुछ नही बदलता है यहाँ
अलबत्ता
कुछ देर मैं तुम्हारी भूमिका निभा लेता हूँ
या तुम मेरी
लेकिन नियति ने
इससे ज्यादा नही छोड़ी है
गिरह अपनी
-------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 12-दिसम्बर-2011 / समय : 10:53 रात्रि / घर
जिन्दगी की इस हद्द के बाद
मैं समझने लगा हूँ कि
यहाँ अपना-पराया
कुछ नही होता है
यह केवल एक भ्रम है
और जिसमें
न केवल मैं,
न तुम
हम सभी घिरे हैं कमोबेश
केवल
सन्दर्भ बदलते हैं
वक्त के साथ
और हम तुम वहीं होते हैं
घिरे हुए
और कुछ नही बदलता है यहाँ
अलबत्ता
कुछ देर मैं तुम्हारी भूमिका निभा लेता हूँ
या तुम मेरी
लेकिन नियति ने
इससे ज्यादा नही छोड़ी है
गिरह अपनी
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 12-दिसम्बर-2011 / समय : 10:53 रात्रि / घर
9 टिप्पणियाँ
बेहद गहन भावो का समावेश्।
14 दिसंबर 2011 को 12:32 pm बजेHummm sach hai, waqt ke saath kewal sandarbh badal jatee hain...
14 दिसंबर 2011 को 1:39 pm बजेआपकी इस सुन्दर प्रस्तुति पर हमारी बधाई ||
14 दिसंबर 2011 को 5:16 pm बजेterahsatrah.blogspot.com
लगभग सबकुछ एक भ्रम है ...
15 दिसंबर 2011 को 9:04 am बजेरिश्तों के बैंक में किश्त भरते भरते जीवन कट जाता है, कभी मूल नहीं पट पाता है।
15 दिसंबर 2011 को 9:22 am बजेbahut badiyaa prastuti.badhaai aapko.
19 दिसंबर 2011 को 11:02 am बजेआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२२) में शामिल की गई है /कृपया आप वहां आइये .और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका सहयोग हमेशा इसी तरह हमको मिलता रहे यही कामना है /लिंक है
http://hbfint.blogspot.com/2011/12/22-ramayana.html
सुन्दर यथार्थ....
23 दिसंबर 2011 को 11:20 pm बजेhttp://urvija.parikalpnaa.com/2011/12/blog-post_27.html
28 दिसंबर 2011 को 10:59 am बजेbahut khoob .. sachmuch bahut badhiya. Badhai.
4 जनवरी 2012 को 9:41 pm बजेएक टिप्पणी भेजें