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गण, पैसा और तंत्र

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

आज,
फिर मना गणतंत्र दिवस
सुबह से ही रेडियो चीख रहे थे
मॉल्स में भारी छूट मिल रही थी
देशभक्तिं शीतलहर सी फैली हुई थी
स्कूलों से लड्डू खाये बच्चे लौट रहे थे
गण चौराहों पर बेच रहा था
एक रुपये में झंडा
जो कुछ देर तो जरूर हाथों में था
रस्मी तौर पर फिर.........


जिनके,
बाप के पास पैसे थे
उनके हाथ में झंड़े थे
तंत्र उनके साथ था
जिसके पास पैसा था
सुस्ता रहा था छुट्टी  की दोपहर
और बचा हुआ,
गण,
पैसे पैदा कर रहा था
झंड़े बेचकर /
घरों से कचरा फेंककर /
या बदल कर भीड़ में
एक जून की जुगत में
जिंदाबाद / जयहिन्द बोल रहा था
-------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : २६-जनवरी-२००९ / समय : ११:३० दोपहर / पलासिया चौराहे पर

14 टिप्पणियाँ

डॉ .अनुराग ने कहा…

साल दर साल झंडे अपनी सूरत बद्लेगे .....उन्हें बेचने वाले अलबत्ता बढ़ेगे ही....

21 जनवरी 2011 को 7:07 pm बजे

स्वतन्त्रता का महत्व है सबके लिये।

21 जनवरी 2011 को 9:05 pm बजे
amit kumar srivastava ने कहा…

गणतंत्र दिवस की बधाई और सबके मंगल की शुभकामनाएं ।

22 जनवरी 2011 को 11:42 am बजे
Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक व्यंग...रचना दिल को छू जाती है..

22 जनवरी 2011 को 3:06 pm बजे
POOJA... ने कहा…

वाह...
ये है हमारे देश के आज का सच...
बहुत सटीक...

24 जनवरी 2011 को 12:36 pm बजे
Kunwar Kusumesh ने कहा…

गणतंत्र दिवस के अवसर पर सामयिक लेखन.

24 जनवरी 2011 को 2:19 pm बजे
शोभना चौरे ने कहा…

अ पनी सहूलियत से सब अपनी स्वतन्त्रता के मायने बदल डालते है |फिर आज तो हर चीज बाजार तय करता है की हमे गणतंत्र दिवस कैसे मनाना चाहिए ?

24 जनवरी 2011 को 2:29 pm बजे
vandana gupta ने कहा…

एक कटु सत्य को बडी सरलता से उभारा है।

25 जनवरी 2011 को 11:52 am बजे
बेनामी ने कहा…

कल इस गण से अप्वॉइण्टमेण्त ले रखा है मैने!

25 जनवरी 2011 को 1:48 pm बजे

गण पैसे पैदा कर रहा था झंडे बेच कर ...निर्मम सत्य कहती हुई रचना

25 जनवरी 2011 को 3:16 pm बजे

विलक्षण रचना है ये आपकी...सच्चाई को उजागर करती...इस सच्ची रचना के लिए बधाई स्वीकारें...

नीरज

25 जनवरी 2011 को 6:49 pm बजे
Mithilesh dubey ने कहा…

गणतंत्र दिवस की बधाई और सबके मंगल की शुभकामनाएं

27 जनवरी 2011 को 8:41 pm बजे
मनोज अबोध ने कहा…

ब्‍लाग की दुनिया में आपको इतना समृद्ध पाकर बहुत अच्‍छा लगा । कविता बहुत बहुत अच्‍छी कहते हैं आप । बधाई

2 फ़रवरी 2011 को 7:29 am बजे
Satish Saxena ने कहा…

वाकई ....
शुभकामनायें आपको

2 फ़रवरी 2011 को 9:22 am बजे