शायद, तुम नही जगाते तो
हम जागते ही नही
नींद का खुमार अब भी बाकी है
हम जैसे स्वपन में जीने के आदी हो गये हैं
और हमारी दुनिया
जिसमें वो भी हैं
जो देते हैं नशा हमें ग़ाफिल करने के लिए
उसे दिन कहते हैं
शायद हम जान ही नही पाते कि
दिन होने का मतलब क्या है
बस रात में ही डूबे रहते
वादों का सुरमा लगाये अपनी आँखों में
ये टोपियाँ कितनी उजली हैं तो
शायद हम जिन्दगी यूँ ही गुजार देते
कभी टोपियाँ खरीदते ही नही
बस पहनते जाते
उन्हें देखते हुए
जगाके रख दिया
इस सोते देश को
कम-अज-कम सपने तो देख ही रह था
खुशहाली के
अब रोयगा कि पहले क्यों नही जागा
लेकिन,
तुम्हें इससे मिलेगा क्या?
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 22-अगस्त-2011 / समय : 11:56 रात्रि / घर
हम जागते ही नही
नींद का खुमार अब भी बाकी है
हम जैसे स्वपन में जीने के आदी हो गये हैं
और हमारी दुनिया
जिसमें वो भी हैं
जो देते हैं नशा हमें ग़ाफिल करने के लिए
तुम नही बताते कि
जब आसमान में तारे नही होते तो उसे दिन कहते हैं
शायद हम जान ही नही पाते कि
दिन होने का मतलब क्या है
बस रात में ही डूबे रहते
वादों का सुरमा लगाये अपनी आँखों में
तुम,
यदि नही बतलाते कि ये टोपियाँ कितनी उजली हैं तो
शायद हम जिन्दगी यूँ ही गुजार देते
कभी टोपियाँ खरीदते ही नही
बस पहनते जाते
उन्हें देखते हुए
अण्णा,
यह ठीक नही किया तुमने जगाके रख दिया
इस सोते देश को
कम-अज-कम सपने तो देख ही रह था
खुशहाली के
अब रोयगा कि पहले क्यों नही जागा
लेकिन,
तुम्हें इससे मिलेगा क्या?
---------------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 22-अगस्त-2011 / समय : 11:56 रात्रि / घर
7 टिप्पणियाँ
जागरण का नाद बज चुका है।
27 अगस्त 2011 को 8:06 pm बजेBahut achhee rachana! Jan jagrutee to ho rahee hai.....dekhen aage kya hota hai!
27 अगस्त 2011 को 8:15 pm बजेbahut badhiya kavita... annamay ho gaya hai desh
27 अगस्त 2011 को 8:17 pm बजेसच कहा ... अन्ना ने जगा दिया है सबको नींद से ... बेहद प्रभावी रचना है ...
27 अगस्त 2011 को 9:14 pm बजेचलिए किसी ने जगाया तो अब तो हर तरफ अन्ना ही अन्ना हैं ........सुंदर कविता बधाई
27 अगस्त 2011 को 10:01 pm बजेअन्ना कभी अपने लिए नहीं जिए ... इस लिए उन्हें क्या मिलेगा इसकी चिन्ता उनको नहीं है ...
27 अगस्त 2011 को 11:08 pm बजेबहुत अच्छी प्रस्तुति
so kar bahut khuchh khoya hai...ab jag kar pane ka samay hai....uth jaag misafir bhor bhai
28 अगस्त 2011 को 4:44 pm बजेएक टिप्पणी भेजें