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कविता : गुंजाईश भर सच

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

प्रिय ब्लॉगर साथियों,

नये वर्ष की मंगलकामनाओं के साथ कि आप सभी अपने सपनों को हकीकत में बदल पायें, स्वस्थ रहें, समृद्ध बनें।
वर्ष 2011 की पहली प्रस्तुति दे रहा हूँ, आपके समर्थन और स्नेह की आकांक्षा के साथ सादर प्रस्तुत :-


मेरे,
तुम्हारे बीच
जहाँ खत्म होता है
हमारा एक होना
और हम बँटने लगते है अलग-अलग
वहाँ तुम महसूस करती हो
हवा को साँस लेते हुये
बस उतनी ही गुंजाईश भर सच था
किसी मुलम्में की तरह
हमें जोड़ता हुआ


यही,
सच कचोटता /
कसमसाता था रहरहकर
तब महसूस करता था कि
तुम्हें भी दुनिया देखना चाहिये
अपनी आँखों से
और महसूस करना चाहिये
वो सारी चुभन जो मेरे हिस्से में आती है
तुम्हारे लिये जीते हुये


जबसे,
तुमने घर से बाहर रखा है कदम
दुनिया छोटी हुई है
लेकिन कद भी सिमटा है तुम्हारा
अब तुम्हारी
परछाईयाँ नही आती
मेरे आँगन दहलीज लाँघती हुई
लेकिन,
तुम्हारी गंध जरूर घुली रहती है
मेरे आस-पास अब भी
हमारे बीच की दूरियों में घुल रहा है ज़हर
और चुभन कहीं ज्यादा
----------------------------
मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : 15-दिसमबर-2010 / सायं : 06:45 / ऑफिस

17 टिप्पणियाँ

vandana gupta ने कहा…

शानदार प्रस्तुति।

7 जनवरी 2011 को 1:09 pm बजे

मुकेश जी आपसी संबंधो को गहराई से व्यक्त करती सुन्दर कविता बन पढ़ी है... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना.

7 जनवरी 2011 को 1:36 pm बजे

एक दूसरे की नजर से दुनिया देखना सीख जायें, तो कितना कुछ सुलझ जाये।

7 जनवरी 2011 को 3:11 pm बजे
समयचक्र ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण रचना ... नववर्ष की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं....

7 जनवरी 2011 को 3:15 pm बजे

बहुत ही भावपूर्ण रचना

7 जनवरी 2011 को 6:07 pm बजे

नए साल की आपको सपरिवार ढेरो बधाईयाँ !!!!

7 जनवरी 2011 को 6:07 pm बजे

सुलझी हुई रचना ! बधाई !

8 जनवरी 2011 को 8:33 pm बजे

संबंधों को गहरे से समझ कर लिखा है आपने ...
नया साल मुबारक हो ..

9 जनवरी 2011 को 2:40 pm बजे
M VERMA ने कहा…

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ...

सम्बन्धों को रेखांकित करती यह रचना अत्यंत भावपूर्ण है
सादर

10 जनवरी 2011 को 7:25 pm बजे
ZEAL ने कहा…

.

जिसे हम शिद्दत से प्यार करते हैं और जिसके लिए जीते हैं पल पल , कभी कभी मन कहता है वो भी समझ ले हर अनकही बातों को। महसूस कर ले हर उस चुभन को जो हमने उसकी खातिर झेली , लेकिन उसे कभी महसूस नहीं होने दिया।

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

.

11 जनवरी 2011 को 12:51 pm बजे
हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मुकेश जी कहां थे इतने दिन ......?
पुन: स्वागत है .....
वहाँ तुम महसूस करती हो
हवा को साँस लेते हुये
बस उतनी ही गुंजाईश भर सच था
किसी मुलम्में की तरह
हमें जोड़ता हुआ

आते ही चक्कर में दाल दिया न .....
लाजवाब ....!!

11 जनवरी 2011 को 8:16 pm बजे
Kunwar Kusumesh ने कहा…

बनते-बिगड़ते संबंधों पर आपकी सुन्दर कविता पढ़ी. किसी का एक शेर याद आ गया:-

अंदाज़ हूबहू तेरी आवाज़े-पा का था.
देखा पलट के मैंने तो झोका हवा का था

15 जनवरी 2011 को 12:50 pm बजे
Dr Xitija Singh ने कहा…

बहुत खूबसूरत शब्द दिए हैं आपने अपने भावों को... नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ...

15 जनवरी 2011 को 2:37 pm बजे
इस्मत ज़ैदी ने कहा…

यही,
सच कचोटता /
कसमसाता था रहरहकर
तब महसूस करता था कि
तुम्हें भी दुनिया देखना चाहिये
अपनी आँखों से
और महसूस करना चाहिये
वो सारी चुभन जो मेरे हिस्से में आती है
तुम्हारे लिये जीते हुये

बहुत सुंदर !

15 जनवरी 2011 को 8:17 pm बजे
POOJA... ने कहा…

वाह... इसे कहते हैं "my version of truth"
बहुत खूब...

16 जनवरी 2011 को 11:52 am बजे

प्रिय बंधुवर मुकेश कुमार तिवारी जी
नमस्कार !

बहुत भावपूर्ण रचना है …
… आशा है, नव वर्ष में आपकी प्रखर लेखनी से ऐसी रचनाएं निसृत हों जिनके द्वारा आपके हृदय के प्रेम , संतुष्टि और आनन्दोल्लास का प्रसाद आम पाठक तक पहुंचे … तथास्तु !


>~*~ हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

16 जनवरी 2011 को 1:13 pm बजे