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जंगली होता आदमी

सोमवार, 14 जून 2010

शायद,
अब बकरियाँ सीख लें
अपने दाँतों को पैना करना
और काट लें सड़कों पे भागते आदमी को


शायद,
अब मुर्गें भी सीख लें
अपने पंजों में जान डालना
और पकड़ बनाना मजबूत नाखूनों के सहारे
कुछ ऐसी की
नोंच सके आदमी का चेहरा


जंगल,
तो पहले भी महफूज नही था बिल्कुल
शायद इसिलिये ही
इन्होंने पसंद किया होगा
किसी खूंटे से बंधना /
तलाश लेना अपने लिये दड़बा कोई
लेकिन,
यह पालतू अब ड़रने लगे हैं
घरों में जंगली होते आदमी से
आखिर जान तो सभी को प्यारी होती है
फिर,
वो चाहे कोई चौपाया ले या दोपाया
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : १०-जून-२०१० / समय : ०३:०० दोपहर

11 टिप्पणियाँ

Vinay ने कहा…

क्या पैनी बात की है

14 जून 2010 को 4:54 pm बजे
दिलीप ने कहा…
S.M.Masoom ने कहा…

बहुत खूब मुकेश तिवारी साहेब दिल खुश केर दिया. यकीन जानिए जंगले इस दोपाये की दुनिया से ज्यादा महफूज़ है. जान्वेर सिर्फ भूक लगने पे काटता है इस दोपाये का कोई भारिसा नहीं कब कहां काट ले.

14 जून 2010 को 6:17 pm बजे
आभा ने कहा…

सच कह रहे हैं आप...

14 जून 2010 को 6:29 pm बजे
kshama ने कहा…

Duniya ki sab se darawni cheez adami hee to hai!

14 जून 2010 को 6:34 pm बजे
मनोज कुमार ने कहा…

सही कहा आपने -- घरों में जंगली होत जा रहा है आदमी।

14 जून 2010 को 9:33 pm बजे
M VERMA ने कहा…

यह पालतू अब ड़रने लगे हैं
घरों में जंगली होते आदमी से
दोपाये के दंश को सहकर चौपाये जब अपने तंज को और पैना करना चाहते है तो आखिर ताज्जुब किस बात का.
बहुत सुन्दर रचना
प्रणाम

14 जून 2010 को 10:00 pm बजे

बहुत सही बात कही आपने....

14 जून 2010 को 10:28 pm बजे
sanu shukla ने कहा…
vandana gupta ने कहा…

बेहतरीन………लाजवाब्……………शानदार्।

15 जून 2010 को 12:54 pm बजे