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नवसृष्टी का प्रारंभ.......

शुक्रवार, 29 मई 2009

जब,
मुझे छोड़ना था
जीवन के इस पड़ाव पर
वो सब जो, सारी जिन्दगी जमा किया था
फिर किसी एक को साथ रख
तय करना हो शेष सफ़र

बड़ा,
मुश्किल था
चुनना किसे रखना है साथ
या किसे छोड़ देना है
धीरे-धीरे,
मुझमें साहस आया कि
मैं चुन सकूं
अपने विवेक बल पर

सबसे,
पहले वह छूटा
जो मुझे प्रिय था
शायद मैं त्याग की शुरूआत यहीं से करना चाहता था
इक इक को चुनने छोड़ने के बाद
मेरे लिये शेष बचा रहा
शून्य!

मैं,
स्तब्ध, अचंभित दुविधा में
कि जब सभी छूट गया है तो
फिर क्यों पकड़ना है
शून्य
और ढोना है शेष बचे सफ़र में

शून्य,
पैदा करता है विरक्ती
वैराग्य के चरम पर
फिर, जन्म लेता है मोह
और
शून्य के अमृतकुंभ से जन्म लेने लगते हैं
वो सब जिन्हें मैं त्याग आया था
जैसे नवसृष्टी के प्रारंभ की संध्यावेला हो
और मुझे निभानी हो भूमिका
"नूह" की
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : १३-मई-२००९ / समय : ११:२५ रात्रि / घर

15 टिप्पणियाँ

बहुत अच्छा लिखा आपने तिवारी जी;

जिंदगी का दिन एक आयेगा
जब वारंट देके यम् बुलाएगा,

जल्दी मुझे वहाँ जाना होगा
कुछ न संग ले जाना होगा,

घर-खेत, धन-माल माया
बच्चे, बीबी जो है सब प्यारे,

रखा ढकाया सब छूट जायेगा
जब वारंट देके यम् बुलाएगा,

29 मई 2009 को 10:57 am बजे
रंजू भाटिया ने कहा…

शून्य के अमृतकुंभ से जन्म लेने लगते हैं
वो सब जिन्हें मैं त्याग आया था
जैसे नवसृष्टी के प्रारंभ की संध्यावेला हो
और मुझे निभानी हो भूमिका
"नूह" की

इस हालात को पाने में कितना सुखद अनुभव होता न ...कुछ नया फिर से शुरुआत होने की कोशिश एक उम्मीद ,एक आशा ..पर इस तक पहुचने के लिए कितनी पीडा से गुजरना होगा ,मंथन करना होगा न ..खुद को ही पाने का ..बहुत पसंद आई यह रचना मुकेश जी ...शुक्रिया

29 मई 2009 को 11:00 am बजे

nihshabd kar diya aapne,adwitiye rachna...prarambh,prarabdh.....dono alaukik hain

29 मई 2009 को 5:44 pm बजे
रंजना ने कहा…

Bahut hi sundar bhavpoorn...Waah !!

29 मई 2009 को 6:32 pm बजे

tyaag ke baad hmesha ek shuney hi bachta hai...ek khalipan...boht khubsurat kavita

29 मई 2009 को 8:00 pm बजे
Ashutosh ने कहा…
Prem Farukhabadi ने कहा…

तिवारी जी ,

मैं तो कविता के भावों में रम गया और
सच पूँछिये धुल गया .दिल से बधाई.

1 जून 2009 को 6:01 pm बजे
हरकीरत ' हीर' ने कहा…

और मुझे निभानी हो भूमिका
नूह की ......

सुन्दर भावाभिव्यक्ति .....!!

यहाँ नूह शब्द का अर्थ स्पष्ट करें ...!!

2 जून 2009 को 12:22 am बजे
daanish ने कहा…

शून्य पैदा करता है विरक्ति
वैराग्य के चरम पर
फिर जनम लेता है मोह .....

बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
जीवन दर्शन को करीब से समझाती हुई
आपकी लेखनी को सलाम

---मुफलिस---

2 जून 2009 को 8:35 pm बजे

tivariji,
सबसे,
पहले वह छूटा
जो मुझे प्रिय था
शायद मैं त्याग की शुरूआत यहीं से करना चाहता था
इक इक को चुनने छोड़ने के बाद
मेरे लिये शेष बचा रहा
शून्य!
tyaag ki shuruaat priyata se hi hoti he//aour ant me shoonya bachta he, jo navsrashti ke aarambh kaa soochak hota he/ fir is jivan me apna kyaa he? prem he, jab vo tyaag diya jaataa he to bachta vese bhi kuchh nahi//
jivan darshan se yukt aapki kavita ne kai saare vichaar peda kar diye, aour me unme ese ghul gayaa ki ubarne me samay lagaa//
शून्य,
पैदा करता है विरक्ती
वैराग्य के चरम पर
फिर, जन्म लेता है मोह
is prakriya ko aapne achhe shbdo me vyakt kar diya/ jivan ke sach ko ukerti aapki kavita me sachmuch arth he//jese jivan aour uske baad mrutyu,, fir jivan....//veragya ka charam moh me tabdil hota he///moh ka charam virakti peda karta he/// jnha bhi charam hoga vnha se swatah aapko nikal jaanaa hota he//aour fir charam ki talaash/ kya jivan he???taajjub hota he, aadmi inhi saare fero me uljha rah kar jivan-maran pe rota rahta he///
bahut achhi lagi aapki kavita// man prasanna ho gaya//

aour hnaa aap mumbai aane vale the???kya hua?? aapka ph bhi nahi lagta???

3 जून 2009 को 1:27 am बजे

सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद स्वीकारें...

3 जून 2009 को 7:01 pm बजे

सुन्दर भावाभिव्यक्ति.....

4 जून 2009 को 5:48 am बजे
गौतम राजऋषि ने कहा…

अपने काम की वजह से ज्यादा पढ़ नहीं पाता ब्लौग में...आपका शुक्रगुजार हूँ कि आप मेरे ब्लौग पर आये...अन्यथा इस "कवितायन" के अनमोल खजाने से वंचित रह जाता मैं।
आह, यहाँ तो एक-से-एक हीर-पन्ने हैं..
"सबसे,पहले वह छूटा / जो मुझे प्रिय था "
एक अनूठी कविता..
धीरे-धीर कर सारी पढ़ूंगा

और आपके मुख से अपनी लेखनी की तारीफ़ सुनना कुछ यूं कि सूरज जमीन पर के जलते चिराग को कहे कि आज तो बड़ी रौशनी फेंक रहे हो...

मेहरबानी !

4 जून 2009 को 4:30 pm बजे
shama ने कहा…

Bade achhe se likha hai...nav srushteekaa aarambh..! Aisabhi koyee soch sakta hai, pehlee baar mehsoos kiya! Bohot khoob!

16 जून 2009 को 10:13 pm बजे
vikram7 ने कहा…

शून्य पॆदा करता.....
अति सुदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

11 जुलाई 2009 को 1:50 pm बजे