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तार तार सच

सोमवार, 15 दिसंबर 2008

हम,
लपेटते हैं तार-तार सच
और लपेटते ही चले जाते है
जिन्दगी भर
फिर एक दिन बदल जाते हैं
कुकून में

जब,
उनके हाथ चढते हैं तो
पहले उबाले जाते हैं
फिर नोचा जाता हैं सच
और बदल दिया जाता है रेशम में
सजने के लिये उनके बदन पर
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०७-दिसम्बर-२००८ / समय : ११:१० रात्रि / घर