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वो, आदमी नही रहा

शनिवार, 8 नवंबर 2008

यह क्या हुआ?
अचानक कि आदमी की
पहचान खत्म हो गई
उसका नाम/काम सब खो गये
और वो
पहचाना जाने लगा है
नये ही प्रकार से

कहीं से भी गुजरो
चाहे पहचान हो ना हो
हर कोई पूछ लेता है
कि क्या हाल है?
कैसा चल रहा है?
घर में सब ठीक तो है
बच्चे, भाभी वगैरह?

उसकी,
पहचान लौट रही है मनुवाद के दौर में
अब पहचाना जा रहा है उसे
जाति से / समाज से
और किसी जादू-तमाशे की तरह
बांटा जा रहा है
जाति/धर्म/वर्ण/वर्ग के आधार पर
किस जाति का है?
किस समाज का है?
कितने लोग उसके साथ है?
या फ़िर आंका जा रहा है
उसकी न्युइसंस वैल्यू पे

कोई खास वजह नही है
इन बदलावओं की
बस, चुनाव सिर पर है
और वो,
आदमी नही रहा
मात्र एक मतदाता(वोटर) रह गया है.
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०८-नवम्बर-२००८ / समय : ०१:०० दोपहर / ऑफ़िस

1 comment

sandhyagupta ने कहा…

Bahut achcha likha hai aapne.

guptasandhya.blogspot.com

9 नवंबर 2008 को 8:59 pm बजे