सूरज,
क्षितिज की अटारी चढ झांकने लगा है
आसमान पर फ़ैलनी लगी सिन्दूरी आग
सुबह की पहली किरण ने
अभी अभी रखा है कदम धरती के सीने पर
मेरी,
मुट्ठी में कैद हुई
नर्म सी गर्माहट हथेलियों के बीच
पका रही है सपनों को
अब सूरज देखने लगा है मुझे
बादलों के झुरमुट से झांकते
और रोशनी भिगोने लगी है
कुछ,
देर उछल-कूद के बाद
थका सूरज अब ठहर आया है मेरे साथ
और मुझे विश्वास दे रहा है
बदल रहा है आशाओं को पसीने में
और पसीने को संकल्पों में
थका-हारा,
सूरज अब समेटने लगा है
दिनभर के फ़ैलाव को
और उतरने लगा है सीढीयाँ
सिर से अटारी और फ़िर
डुब जाता है गहराईयों में
देते हुये संकल्पों को सपनों की शक्ल
शाम को जगा जाता है हौले से
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०४-नवम्बर-२००८ / समय : रात्रि १०:४० / घर
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1 comment
very nice post
15 नवंबर 2008 को 12:16 am बजेShyari Is Here Visit Plz Ji
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