शब्द,
सब्र नही रख पाते हैं
पहले फूटते हैं अंतर कोंपलो की तरह
और तलाशते हैं मौका बाहर निकलने का
हवा पर सवार हुये
शब्द फिर बदलते हैं ध्वनि में
गूंजते है प्रतिध्वनियां बनकर
और ढूंढते हैं रास्ते निकल पड़ने का
फिर तौड़ते हुये मौन की सीमा रेखा को
शब्द बदलते हैं संवादों में
कोशिश करते हैं निकलने की बाहर
गले के बारास्ता येन केन प्रकारेण
शब्द,
जब नही निकल पाते हैं बाहर
अपने सारे प्रयासों के बाद
तो, बदल जाते हैं आँसुओं में
और तलाशते है रास्ता /
जमा होने लगते हैं आँखों में
या बदल जाते हैं झुर्रियों में
और सजने लगते हैं चेहरे पर
या फिर बदल जाते हैं रंग में
पहले मौजूदगी का अहसास कराता हैं
बालों का बदलता रंग
फिर लगा देते हैं पंख बालों को
वो शब्द,
जो नही बदल पाये खुद को
सारे प्रयासों के बाद घुटते हैं
और जमा होने लगते हैं ऐड़ियों में
अंततः बदल जाते हैं
सिसकते हुये बिवाईयों में
और बोलने लगते हैं
कोई,
शब्द चुप नही बैठता
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०६-दिसम्बर-२००८ / समय : ०६:४० सुबह / घर
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6 टिप्पणियाँ
आकर्षक व्यक्तिव के धनी श्री तिवारी जी /विस्तर में उगती नागफनी के वाद आपका लिखा कुछ न पढ़ पाया /आज जमीन से पैदा होते भाई :,बीबी नहीं चाहती तथा आज का शब्द पढ़ा /शब्दों को निकलने का रास्ता न होने पर आंसुओं में तब्दील होजाना ,वास्तविकता का वर्णन जो हम रोज़ (रोज़ तो नहीं हां एकाध माह में ) देखते हैं /पुरूष बकबक करके अपने आंसू शब्दों के द्वारा निकल देता है /जमा हुए आँसू झुर्रियों में बदल जाते है ,मैं कुछ तारीफ ही नहीं कर सकता इन लाइनों की /भइया तिवारी जी आपकी तो एक एक भावाभिव्यक्ति सीधे ह्रदय सी निकली है उसका शब्दों में व्यान कैसे हो /
7 दिसंबर 2008 को 12:54 pm बजेअसल में क्या है के हम दिमाग से कविताएं लिखते है लेकिन कोई भी कवि अपने युग की ,अपनी परिस्थितियों की अवहेलना नहीं कर पाता और फिर जो वास्तविक झलक कविता में दिखती है वह दिमाग से लिखी कविताओं से ज़्यादा प्रभावकारी हो जाती है / आप अपना ई मेल देते तो कुछ और आपसे निवेदन करता /मैं केवल यह चाहता हूँ कि ऐसी रचनाएं ज़्यादा से ज़्यादा पाठक पढ़ सकें
mujhe aapka e-mail chahiye
8 दिसंबर 2008 को 3:57 pm बजेआज ई मेल पर कुछ निवेदन कर रहा हूँ
9 दिसंबर 2008 को 12:12 pm बजेSundar.....
10 दिसंबर 2008 को 5:25 pm बजेBahi mukesh ji ,
10 दिसंबर 2008 को 7:17 pm बजेthanks for sendin comments. Ihave read your poems . you are having apoetic heart. write more so that writing work can get more perfection.
जो नही बदल पाये खुद को
10 दिसंबर 2008 को 10:15 pm बजेसारे प्रयासों के बाद घुटते हैं
और जमा होने लगते हैं ऐड़ियों में
अंततः बदल जाते हैं
सिसकते हुये बिवाईयों में
और बोलने लगते हैं
कोई,
शब्द चुप नही बैठता
बहुत सुंदर बधाई
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