हम,
लपेटते हैं तार-तार सच
और लपेटते ही चले जाते है
जिन्दगी भर
फिर एक दिन बदल जाते हैं
कुकून में
जब,
उनके हाथ चढते हैं तो
पहले उबाले जाते हैं
फिर नोचा जाता हैं सच
और बदल दिया जाता है रेशम में
सजने के लिये उनके बदन पर
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनांक : ०७-दिसम्बर-२००८ / समय : ११:१० रात्रि / घर
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10 टिप्पणियाँ
कविता पढ़कर अच्छा लगा!
15 दिसंबर 2008 को 5:16 pm बजे-------------------------
http://prajapativinay.blogspot.com/
Respected sir,
16 दिसंबर 2008 को 12:31 am बजेAp mere blog par aye,aur meree rachna ko saraha,ye mera saubhagya hai.Asha hai age bhee mere utsah ko badhayenge.
apkee kavitayen aj ke ytharth ko chitrit karne ke sath hee ek alag tarah ke shilp men rachee gayee hain.Badhai.
जीवन के सत्य का सटीक चित्रण ..........
16 दिसंबर 2008 को 10:13 am बजेसुन्दर भाव और सुन्दर शैली ............
धन्यवाद और शुभ कामनाएं
bahut hi satik chitran....umda....
23 मार्च 2012 को 8:04 am बजेbahut umda bhaav behtreen prastuti.
23 मार्च 2012 को 8:23 am बजेvery nice....
23 मार्च 2012 को 8:54 am बजेबहुत ही सुन्दर.सार्थक .रचना...
23 मार्च 2012 को 11:44 am बजेकम शब्दों की सारगर्भित रचना
23 मार्च 2012 को 3:12 pm बजेमन को अंदर तक छू गई ..
23 मार्च 2012 को 6:00 pm बजेगहन अभिव्यक्ति
23 मार्च 2012 को 11:51 pm बजेएक टिप्पणी भेजें