आज,
फिर पूरा दिन गुजर गया
टारगेट के पीछे भागते
दिन है कि
जैसे पूरा था ही नही
अधूरा सा दिन
बस पलों में सिमट आया
धुंधलके में
टारगेट वहीं था
और हमारे बीच दूरियाँ
रात की तरह गहराती जा रही थी
सारा,
सामर्थ्य झोंक कर भी
मैं
विफलता के साये में
ढूंढ रहा था
कोई सुकून भरी तपिश /
कोई पसीने में नहाई सुबह /
और बचना चाहता था
किसी रिव्यूह से
जहाँ लानतों का ठीकरा
बुके के पीछे से झांकता
कर रहा होगा
मेरा इंतजार
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मुकेश कुमार तिवारी
दिनाँक : १८-अगस्त-२००९ / समय : ०७:२५ सायं / ऑफिस
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15 टिप्पणियाँ
जहाँ लानतों का ठीकरा
18 अगस्त 2009 को 7:59 pm बजेबुके के पीछे से झांकता
कर रहा होगा
मेरा इंतजार
==========
कितना विद्रूप यथार्थ छिपा है इन पंक्तियो के अन्दर. वाकई सच तो यही है.
श्रेष्ठ रचना के लिये बधाई
जिन्दगी मुसलसल सफर है - जब मंजिल पर पंहुचे तो मंजिल बढ़ा दी! :(
18 अगस्त 2009 को 8:22 pm बजेकोई सुकून भरी तपिश /
18 अगस्त 2009 को 8:25 pm बजेकोई पसीने में नहाई सुबह /
शब्दों का गजब चुनाव किया है मुकेश भाई आपने। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
जय हो! क्या दर्द है!
18 अगस्त 2009 को 8:44 pm बजेगहरे भावो को बहुत ही सुन्दरता से अनोखे शब्दो से सजाया है ...........एक खुब्सूरत रचना.....बहुत ही खुब
18 अगस्त 2009 को 9:00 pm बजेकिसी sales वाले से पूछा होता 'टारगेट' के बारे में ???
18 अगस्त 2009 को 9:42 pm बजेखैर , आगे आने वाले 'टारगेट्स' के लिए हमारी शुभकामनाएं।
अधूरा सा दिन
19 अगस्त 2009 को 10:20 am बजेबस पलों में सिमट आया
धुंधलके में
टारगेट वहीं था
और हमारे बीच दूरियाँ
रात की तरह गहराती जा रही थी
बहुत खूब ...बेहद खूबसूरत लगी यह रचना
हाल बस यूँ ही बेहाल है
19 अगस्त 2009 को 2:05 pm बजे---
ना लाओ ज़माने को तेरे-मेरे बीच
शायद नया टारगेट ही आज के समाज के लिए प्रगति का वास्तविक मायने रह गया है................
20 अगस्त 2009 को 3:54 pm बजेसारा,सामर्थ्य झोंक कर भी
20 अगस्त 2009 को 4:47 pm बजेमैं
विफलता के साये में
ढूंढ रहा था
कोई सुकून भरी तपिश
बहुत ही सार्थक लिखा है ......... इंसान बस talaash करता rahta है sukoon का इक पल ........ bhaavon को सार्थक रूप से शब्दों में piroya है आपने .........
कोई सुकून भरी तपिश वाह तिवारीजी |बुके के पीछे से झांकता लानतों का ठीकरा |टारगेट वही मगर दूरियां रात की तरह गहराती |
20 अगस्त 2009 को 8:28 pm बजेसुन्दर भाव भरी रचना के लिये बधाई
21 अगस्त 2009 को 11:29 am बजेhmmm ....
21 अगस्त 2009 को 2:49 pm बजेBhai,
23 अगस्त 2009 को 7:50 am बजेhum sabhi bhaagate hai TARGET ke peechhe aur Jindagi se door chale jaate hain.
Achchhi lagi Kavita.
Jeetendra
कभी टार्गेट के पीछे तो कभी रिपोर्ट के तो कभी डेटा के पीछे भागते- भागते जिंदगी पीछे छूट जाती है.. बड़ा सार्थक लिखा है
25 अगस्त 2009 को 2:17 am बजेएक टिप्पणी भेजें